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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 198 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 तुसमासं घोसंतो भावविसुद्धो महाणुभावो यं णामेण य सिवभूई केवलणाणी फुड जाओ 53 भा.पा. "तुषमासं घोषन्तो" भावों की विशुद्धिपूर्वक शिवभूति महामुनि अंतर्मुहूर्त में केवलज्ञानी बन गयें जिन गुरुओं ने पाठ सिखाया था, वे गुरु आकर शीश झुका रहे हैं त्रिलोकीनाथ, केवली प्रभु! आपके चरणों में मैं तो चिल्लाता रहा और आप केवली बन गयें इसलिए इस क्षयोपशम ज्ञान का अहम् मत करनां यह कब आ जाये, कब चला जाये, कोई पता नहीं हैं प्राप्त करना तो क्षायिक ज्ञान को इसलिए तुम सब जानना भूल जाओ, एक ही जान लो, तो सब जान लोगे कि एक मेरी निज-आत्मा हैं मनीषियो! आचार्य भगवान् कह रहे हैं "एकः करोति हिंसा' हिंसा एक कर रहा हैं कचरा एक ने फेंका था, शेष ने तो कुछ नहीं किया, लेकिन सात सौ कुष्ठी हो गयें ज्ञानियो! ध्यान रखना, अनुमोदना करने के भाव भी आते हैं तो अच्छाई की अनुमोदना करना, बुराई की अनुमोदना नहीं कर लेनां कभी-कभी कितना व्यर्थ में बंध हो जाता है? बहत गहराई से समझना, टेलीवीजन के सामने आप कैसे निर्बन्ध रहते होंगे? मैच देख रहे हैं, झगड़े देख रहे हैं, कहीं कुछ भी देख रहे हो, भाव तो आ गयें दैनिक समाचार-पत्र से भी तुम बच नहीं सकतें चोरी, छल-कपट, बलात्कार, हिंसा आदि की घटनाएँ उसमें लिखी हैं अनादि से संस्कार हैं राग प्रचुर होता हैं आप सम्मेद शिखर की वंदना करने गये थे, अचानक कोई घटना विदिशा की लिखी मिल गयी, उसको पुनः देखते हों अरे! विदिशा की, कहाँ बैठे थे आप ? अहो! सिद्धक्षेत्र में विराजी आत्माओ! आप यहाँ की याद कर रहे हों बंध कहाँ का होगा ? अब देखना साधक कों सिद्धक्षेत्र में अखबार पढ़ने से मन में कोई विकल्प आ गया, तो बंध कहाँ का होगा ? उसमें स्त्रीकथा, चोरकथा, राज्यकथा, एवं भोजन कथा, इन चार कथाओं के अलावा कौन सी वीतराग-कथा लिखी होती है ? सोचो, उस समय भाव तुम्हारे कहां जा रहे हैं प्रमाद तो आयेगा और नियम से बंध होगा, क्योंकि कितने ही आप जैन हो, धर्मात्मा हो, भाव तो आते हैं राग जहाँ हुआ, वहाँ तेरे में एक क्षण भी नहीं लगेगा, प्रवेश कर गये कर्मशत्रु हिंसा को एक ने किया, फल को बहुत भोग रहे हैं घर में एक सदस्य अनाचार से कमा कर ला रहा है, तुम सब भूल नहीं जानां भोजन किसके घर में कर रहे हो, किसके कपड़े पहन रहे हो और किसकी अनुमोदना में लीन हो? भो ज्ञानी! जितना राग है, उतना बंध तो होगां उत्तम वंश वाले उत्तम काम करते थे आटे की चक्की नहीं लगाते थे; कोल्हू नहीं लगाते थें यह मत सोचना कि पिताजी कर रहे हैं, तो पाप हमें नहीं लगेगा; क्योंकि एक कर रहा है और फल बहुत भोग रहे हैं एक सम्राट ने सेना को आदेश कर दिया कि जाओ, उस देश पर चढ़ाई कर दों इतनी बड़ी सेना हिंसा कर रही है, पर भोग एक रहा हैं प्रधानता किसकी है ? आदेश जिसने दिया था वह तो सिंहासन पर Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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