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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 197 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 जैसी है वह जाने, लेकिन निजपरिणति में विकार करके हम अपनी आत्मा में कर्मों के कुष्ठरोग को उत्पन्न न करें भो ज्ञानी! देखो परिणामों की दशां जितने पापी हुये हैं, वे सब प्रायश्चित्त करके सिद्ध बनकर चले गये; लेकिन उन पापियों की बातें कर- करके हम पापी क्यों बनें, हम उनकी परमात्म- दशा की ही बात करें मारीचि से बड़ा पाप कौन कर सकता है ? जिसने 363 मिथ्यामत चला दियें मिथ्यात्व से बड़ा क्या पाप है? पर आज वे हमारे जिनालय में विराजमान हैं उनके शासन को हम जयवंत कर रहे हैं अब तुम देखो मारीचि की पर्याय को और करो परिणाम खराबं भो ज्ञानी! मुमुक्षु की आँख पाप-पर्याय के लिए तो बंद होती है, पर पुण्य-पर्याय के लिए चौबीस घंटे खुली होती हैं मुमुक्षु अपनी आँख से पाप-पर्याय को देखना ही नहीं चाहता हैं इसलिए अमृतचंद्र स्वामी कह रहे हैं कि भाव-अहिंसा ही पूर्ण अहिंसा है और जिसके पास भाव अहिंसा हो, परंतु द्रव्य-अहिंसा न हो, कैसे संभव है ? अरे! जिसका भाव होगा उसके पास द्रव्य भी होगां इसीलिए धर्म तो वास्तव में बचपन में ही होता है, पचपन में तो सिर हिलने लगता हैं बचपन में सँभल गये होते तो पचपन में यहाँ नहीं मिलतें इसीलिए अब भी कोई बात नहीं, तुम परिणति बचपन ही की बनाकर चलनां जिनवाणी में लिखा है कि संयम के लिए हर समय वृद्ध बनकर रहना और ज्ञान के लिए बालक बनकर रहनां ___भो चेतन! आगम में उल्लेख आया है कि एक अस्सी वर्ष के मुनिराज याद कर रहे थे “एक्को करेदि कम्म", कोई विद्वान् पहुँचां प्रभु! अब तो आप सल्लेखना करो, आप याद करने में लगे हो, यह तो बचपन के काम थे वे योगी कहते हैं- भो ज्ञानी! यह बचपन ही तो चल रहा हैं अभी मेरी सल्लेखना का बचपन ही तो चल रहा हैं मैंने बारह वर्ष की समाधि कल ही तो ली हैं अतः मैं इस कारण याद नहीं कर रहा हूँ कि तुम्हें सुनाऊँगा, बल्कि मैं इसलिए याद कर रहा हूँ कि इस आत्मा में संस्कार डाल दूंगा, जो आगे चलकर केवलज्ञान के संस्कार बन जायेंगें इसलिए जब भी तुमको समय मिले, तो आप श्लोक याद करने बैठ जाया करों याद नहीं हो रहा, इसकी चिंता नहीं करनां जितनी देर से याद होगा, उतना अच्छा होगां देखो, ज्ञानी हमेशा हर बात को अपनी परिणति की निर्मलता में सोचता है कि जितनी देर तक हम याद करेंगे, उतनी देर तक अशुभ से बचेंगें जो विचार तुम्हारे अन्यथा जा रहे थे, वे आपके श्रुत-चर्चा में जाने लगें शिवभूति महाराज, जिनको बारह वर्ष में णमोकार मंत्र' याद नहीं हुआ था, पहुँच गये गुरुदेव के चरणों में, प्रभु! क्या करूँ ? गुरुदेव बोले-कोई बात नहीं, तुम इतना याद कर लो "तुषमास भिन्नम्" अरे! वह भी भूल गयें देखो कर्म की विचित्रतां जा रहे थे चर्या को, एक माँ दाल धो रही थी तो "तुषमास भिन्नम्" याद आ गया, अहो! यही तो कहा था महाराजजी नें मास यानी दाल से, तष याने छिलका भिन्न है, ऐसे ही देही से देह भिन्न हैं अब नहीं जा रहा हूँ आहार करने, कहीं चला गया तो फिर भूल जाऊँगां अतः एक शिला पर बैठ गयें Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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