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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 194 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 'बहुजनों की हिंसा का फल एक को एवं एक की हिंसा का फल अनेक को' एकः करोति हिंसा भवन्ति फलभागिनो बहवः बहवो विदधति हिंसा हिंसाफलभुग भवत्येक 55 अन्वयार्थ : एक: हिंसा करोति = एक पुरुष हिंसा को करता हैं फलभागिनः = फल भोगने के भागी बहवः भवन्ति =बहुत होते हैं हिंसा बहवः विदधति = हिंसा को बहुत जन करते हैं हिंसाफलभुक = हिंसा के फल का भोक्तां एकः भवति = एक पुरुष होता हैं कस्यापि दिशति हिंसा हिंसाफलमेकमेव फलकालें अन्यस्य सैव हिंसा दिशत्यहिंसाफलं विपुलम् 56 अन्वयार्थ : कस्यादि हिंसा = किसी को हिंसां फलकाले =उदयकाल में एकमेव हिंसा फलम् दिशति = एक ही हिंसा के फल को देती हैं अन्यस्य = किसी को सैव हिंसा विपुलम् = वही हिंसा बहुत सें अहिंसाफलं दिशति = अहिंसा के फल को देती हैं अन्यत् न = अन्य फल को नहीं भो ज्ञानी आत्माओ! द्रव्य (सम्पत्ति) को अर्जित कर लेना कोई बड़ी बात नहीं उसकी प्राप्ति पुण्य से होती हैं जिस समय चक्रवर्ती के पुण्य का योग आता है तो उसकी आयुधशाला में स्वयमेव चक्ररत्न प्रगट हो जाता है, 32,000 मुकुटबद्ध सम्राट उसके चरणों में शीश झुकाते हैं मनीषियो! वैभव को महान वही मानता है, जिसने धर्म को नहीं जाना; परंतु जिसने धर्म को समझ लिया है, उसकी दृष्टि में वैभव कुछ नहीं होतां वह तो वैभव को आते हुए व जाते हुए देखकर मुस्कराता हैं यह ज्ञानी की दशा हैं अहो! अनुभव करना कि अल्प पुरुषार्थ से भी बहुत विभूति मिल जाती है तथा बहुत पुरुषार्थ करने पर भी पेट भर नहीं मिलता, क्योंकि अल्प हिंसा से भी महान हिंसा कर रहा था और महान हिंसा के होने पर भी उससे अल्प हिंसा भी नहीं हुई Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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