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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी : पुरुषार्थ देशना परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 155 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 v- 2010:002 भो ज्ञानी ! सम्यक्दर्शन धर्म की पूर्णता नहीं हैं भवन की नींव ही को भवन की पूर्णता नहीं मान लेनां जिसने नींव को भवन की पूर्णता मान लिया है, वह भवन में बैठ नहीं पायेगा, क्योंकि नींव भवन नहीं हैं आचार्य महाराज कह रहे हैं कि जब ज्ञान की दीवारें खड़ी हो जायेंगी, तब चारित्र की ही छत ढालना पड़ेगी, तभी पानी रुक पायेगा, अन्यथा पानी टपकेगां अहो! जो कष्ट शेर के सामने आने पर भी नहीं होता, वह कष्ट टपका में होता हैं मनीषियो! निश्चय धर्म का प्रारंभ चारित्र के आने पर ही होता है और जहाँ चारित्र आता है, वहाँ दर्शन व ज्ञान स्वयमेव विराजता ही है; क्योंकि जिनेन्द्र के शासन में उसे ही चारित्र कहा जाता है जिसमें दर्शन व ज्ञान होता हैं आचार्य अमृतचंद्र स्वामी ने स्पष्ट कर दिया है कि ज्ञान के उपरान्त चारित्र की आराधना करना चाहियें जहाँ "वथ्थु स्वभावो धम्मो आ जाता है, वहाँ कोई परिभाषा कहने की आवश्यकता नहीं पड़ती, क्योंकि मिथ्यात्व तेरी वथ्यु का धर्म नहीं है, अज्ञानता वस्तु का धर्म नहीं, असंयम वस्तु का धर्म नहीं हैं वस्तु स्वभावो धम्मो यह सूत्र आचार्य कार्तिकेय स्वामी ने "कार्तिकेयानुप्रेक्षा" में लिखा हैं उत्तम क्षमा, उत्तम मार्दव, उत्तम आर्जव, उत्तम शौच, उत्तम सत्य, उत्तम संयम, उत्तम तप, उत्तम त्याग, उत्तम आकिंचन्य, उत्तम ब्रह्मचर्य ही वस्तु स्वभाव है और यह मेरी आत्मा के धर्म हैं लोभ का त्याग, क्रोध का त्याग, मान का त्याग, वाणी का संयम ये मेरी आत्मा के धर्म है भो ज्ञानी! विवेक के साथ बोलने की आवश्यकता हैं माँ जिनवाणी कह रही हैं कि वाणी-संयम नहीं है, तो प्राणी- असंयम भी होते देखा जाता है, और इन्द्रिय- असंयम भी होते देखा जाता है अहो! एक हीदिन के वाणी असंयम का प्रभाव था कि महाभारत हो गयां भो ज्ञानियो ! एक दिन आपसे कहा था कि पीना सीखों यदि कषाय को पीना सीख लिया तो खून की नदियाँ बहना बंद हो जायेंगीं द्रोपदी के मुख से छोटा सा ही शब्द निकला था कि 'अन्धों की सन्तानें अन्धी ही होती हैं, इसका परिणाम देखों अहो! एक नारी की तो जीभ हिली, परंतु महाभारत में तो तलवारें हिल गईं जीवन में ध्यान रखना, यदि आपको साँप ने डस लिया, तो आप उपचार तो करो, लेकिन तुम्हारा धर्म उसे मारना नहीं हैं किसी ने आपको गाली सुना दी, उस समय आपने कुछ नहीं कहा तो इससे लगता है कि आपने अनन्त-गुणों में एक गुण की वृद्धि कर लीं जब गुरुदत्त स्वामी के शरीर में अग्नि लगाई गई तो वे मुनिराज कह रहे थे- अहो ! कितना सुन्दर अवसर मिला, अभी अंतःकरण तप रहा था, अब वाह्य - पुद्गल भी अग्नि में तप रहा है, जब दोनों जल जायेंगे तो मेरी आत्मा कुन्दन बन जायेगीं यही कारण था कि वे गुरुदत्त स्वामी केवली-भगवान् बन गये तथा अग्नि लगानेवाला कपिल ब्राह्मण प्रभु के चरणों में भक्त बनकर बैठ गया और उसे सम्यग्दर्शन हो गयां लेकिन मुनिराज ने कपिल को दोष नहीं दियां वे मुनिराज कहने लगे-यदि हम अग्नि और कपिल को देखेंगे तो द्वेष नजर आयेगां हम तो उस दोष को देखना चाहते हैं, जिस दोष ने आज Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact: akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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