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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 154 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 "उदासीन-वृति ही सम्यक्चारित्र" चारित्रं भवति यतः समस्तसावद्ययोगपरिहरणात् सकलकषायविमुक्तं विशदमुदासीनमात्मरूपं तत् 3 अन्वयार्थ : यतः = कारण किं समस्तसावधयोगपरिहरणात् = समस्त पापयुक्त योगों के दूर करने में चारित्रं भवति = चारित्र होता है तत् = वह चारित्रं सकलकषायविमुक्तं = समस्त कषायों से रहित होता हैं विशदं = निर्मल होता हैं उदासीनं = रागद्वेषरहित/वीतराग होता हैं आत्मरूपं = वह चारित्र आत्मा का निजस्वरूप हैं हिंसातोऽनृतवचनात् स्तेयादब्रह्मतः परिग्रहता कात्स्न्यैकदेशविरतेश्चारित्रं जायते द्विविधम् 40 अन्वयार्थ : हिंसातः = हिंसा से अनृतवचनात् = असत्य वचन से स्तेयात् = चोरी से अब्रह्मतः परिग्रहतः = कुशील से, परिग्रह से कात्स्न्यै कदेशविरतेः = समस्त विरति एवं एकदेशविरति से चारित्रं = चारित्रं द्विविधं जायते = दो प्रकार का होता हैं भो मनीषियो! आचार्य अमृतचंद्र जी महाराज ने ज्ञान के उपरान्त चारित्र की चर्चा की है, कि वही ज्ञान शोभायमान होता है जिसमें संयम की सुगंध हों यथार्थ में ज्ञान का फल संयम है और वह संयम अंतरंग का भाव हैं आचार्य कुंदकुंद महाराज ने मोह और क्षोभ से रहित अवस्था का नाम साम्यभाव कहा है, यह साम्यभाव ही संयम हैं Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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