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________________ बरगे पाप्पी अर हत्यारे का भी कदे किल्लाण हो सकै से? मन्नै तै छह म्हीनां मैं हजारां माणस अर लुगाई मारे सैं । " "हां! हो क्यूं ना सकदा ।” परभू नैं समझाया, “देख अरजन, जो बीत ग्या उसका पच्छाताप कर्या अर आगे तू आपणी अगत नैं सिम्भाल ले । आपणे मन मैं रैहूण आले किरोध राक्सस नैं हटा कै, उसकी जंगा धरम नैं भित्तर बसा ले । तेरा किल्लाण जरूर हो ज्यागा । " अरजन नैं भगवान के चरणां मैं मुनी - दीक्सा ले ली। ईब ओ नरमाई, दया अर अहिंसा की खान बण ग्या । छह महीने ताईं अरजन मुनी नैं करड़ी तिपस्या करी । तिपस्या के टैम घणे-ए माणसां नैं उस तै भांत भांत के दुख दीये पर अरजन मुनी आपणी राही ते हटे कोन्यां । वे धरम अर छिमा की मूरत बण ग्ये । एक दन उन नैं केवल ग्यान भी हास्सल हो गया । उनकी आतमा संसार के जनम-मरण तै गी। छूट हरियाणवी जैन कथायें / 28 fret
SR No.009997
Book TitleHaryanvi Jain Kathayen
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherMayaram Sambodhi Prakashan
Publication Year1996
Total Pages144
LanguageHariyanvi
ClassificationBook_Other
File Size19 MB
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