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________________ मेघरथ दन-रात परजा की भलाई सोच्चण मैं लाग्या रहंदा । उसका जी घणा नरम था। राजकाज मैं ओ लाग्या रैह्ता पर फेर भी बरत-बुरत, पोसा अर नित्त / नेम पालण में पाछै कोन्यां रह्या करता। परजा उसकी तारीफ मैं कह्या करती- “यो कीसा राज्जा सै ! सारे ठाठ-बाट सैं फेर भी साधुआं बरगा साद्दा अर सरल जीवन बितावै सै ।” एक बर की बात सै। राज्जा मेघरथ दरबार में बैठे किसे बात पै सोच-बिचार करें थे। चाणचक उनकी गोदी मैं एक कबूत्तर आ पड्या । कबूत्तर नैं बेबसी तै राज्जा कान्नी देख्या । राज्जा नैं सोच्ची अक कबूत्तर में आपणी जान का डर सै । बचता होया मेरे धोरै आया सै । मन्नै चहिए में इसनैं बचाऊं, अभैदान यूं । राज्जा नैं उसतै प्यार का । __कबूत्तर नैं जिब देख लिया अक आडै कोए खतरा नां सै तै ओ माणसां की ढाल बोल्या, "मेरे पाच्छै एक खतरनाक बाज लाग रया सै । ओ मन्नै मार के खाणा चावै सै । मेरे बरगे कमजोर पराणी में बचाओ । मेरी रिक्शा करो।" राज्जा बोल्या- मैं तन्नै सरण यूं सूं । तौं बेखटकै हो कै हो । जिब्बै-ए राज्जा नैं देख्या- एक बाज उड़दा होया आया अर स्याम्मी भींत पै बैठ ग्या । बाज नैं कही, "मेरा सिकार छोड़ द्यो । मैं कई दिनां ते भूक्खा सूं । मैं इन्नँ खाणा चाहूं सूं ।” राज्जा नैं स्यांती तै जुआब दिया, “आपणा पेट भरण खात्तर किस्से कमजोर पराणी की जान लेणा तै पाप सै। तमनैं हमेस्सां पाप ते दूर रैणा चहिए। ऊं भी यो कबूत्तर मेरी सरण मैं आया सै । मैं तै इस सरण मैं आए होए नैं बचाऊंगा। यो मेरा धरम सै।" यास्लु राज्जा/15
SR No.009997
Book TitleHaryanvi Jain Kathayen
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherMayaram Sambodhi Prakashan
Publication Year1996
Total Pages144
LanguageHariyanvi
ClassificationBook_Other
File Size19 MB
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