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________________ को जो व्यंजक क्षमता प्रदान की है, वह निःसन्देह इन कहानियों को हरियाणवी की पूरी तरह अपनी कहानियां प्रमाणित करती है । भाषा के साथ-साथ यह अनुभव की प्रामाणिकता एवम् परिपक्वता का सूचक भी है । पूर्णतः उचित बात के लिए 'सोला आन्ने ठीक' तिलमिला उठने के लिए 'पतंगे लड़ना', अच्छी तरह सन्तुष्ट होने के लिए 'पेट्टा भरना' और निरंतर मूर्खता के लिए 'अक्कल के पाच्छै लठ लिये हांडणा' जैसे मुहावरों के प्रयोग ने इन कहानियों की भाषा को लोक-जीवन का जो रंग दिया है, वह इस कारण से भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण है कि हरियाणवी के पहले कहानी-संग्रह से इस सीमा तक परिपक्व भाषा की अपेक्षा सहजता से नहीं होती । इसीलिए भाषा का यह परिपक्व रूप पहली ही पुस्तक में पा कर पाठकों को सुखद आश्चर्य होगा । 'रोहिणिया चोर' में नगर के व्यापारी जब बढ़ती चोरियों की शिकायत राजा से करते हैं तो राजा के सामने अपने दरबारियों की झूठी राज्य प्रशंसा बेनकाब हो उठती है। तब राजा सोचता है- “कोए तै ईसा होंदा जो साच्ची बतांदा । आड़े ते सारे कुएं मैं-ए भांग पड़ रही सै ।" चोर की अत्यंत चतुराई को इसी कहानी में यह कह कर व्यक्त किया गया है कि वह “गाड्डी की गाड्डी अकल ले रूहूया था ।” भगवान् महावीर की देशना के विषय में लिखा गया है, “सूक्खे धान्नां पै धरम का पाणी एक सांस बरसै था ।” हरियाणा की इन कहावतों ने इन कहानियों की भाषा को और अधिक गरिमा प्रदान की है। भरपूर दुःख में जब भरपूर सुख मिल जाये तो कहा जाता है कि “सूक्खे धान्नां मैं पाणी आ ग्या ।” दूसरी ओर धाराप्रवाह बारिश के लिए यह मुहावरा प्रचलित है कि “राम एक सांस बरसे से ।” कहावत के साथ मुहावरे का भी एक छोटे-से वाक्य में प्रयोग (सूक्खे धान्नां पै धरम का पाणी एक सांस बरसै था । ) यह बताने के लिए पर्याप्त है कि लेखक को एक ओर हरियाणवी पर पूरा अधिकार प्राप्त है तथा दूसरी ओर लेखक की साहित्यिक क्षमतायें भी असंदिग्ध हैं। इन दोनों के मणि- कंचन संयोग के बिना इतना समर्थ वाक्य नहीं गढ़ा जा सकता था। इन कहानियों में ऐसे वाक्य अनेक हैं । हरियाणवी के अनेक ऐसे ठेठ प्रयोगों से ये रचनायें सुसज्जित हैं, जिनका किसी अन्य भाषा में पूर्णतः ठीक-ठीक अनुवाद होना लगभग असंभव है। ऐसे प्रयोग प्रत्येक भाषा के पूरी तरह अपने और अपनी स्वतंत्र पहचान बनाने वाले प्रयोग होते हैं । 'साच्चा भगत कामदेव सरावग' में कामदेव नामक श्रावक की साधना की परीक्षा लेने आने वाला देव हाथी बनकर कामदेव को पांवों तले रौंदते हुए कहता है- “तेरे हाड-हाड दरड़ दूंगा ।" इस प्रयोग की व्याख्या तो की जा सकती है परन्तु ठीक-ठीक यही अभिव्यक्ति इतने ही शब्दों में संभवतः विश्व की किसी भाषा में नहीं हो सकती । हरियाणवी के उक्त वाक्य में ही संपूर्ण ऊर्जस्विता के साथ इस स्थिति का समस्त तीखापन व अर्थ- गौरव व्यक्त हो सकता है। 'रोहिणिया चोर' में चोरियों की शिकायत राजा से व्यापारी इन शब्दों में करते हैं-"म्हाराज! हम तै चोरियां नैं खा लिए ।" (xv)
SR No.009997
Book TitleHaryanvi Jain Kathayen
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherMayaram Sambodhi Prakashan
Publication Year1996
Total Pages144
LanguageHariyanvi
ClassificationBook_Other
File Size19 MB
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