SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 17
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मूल्यवान् विचार अभिव्यक्त करती हैं। ये विचार पूरी कहानी के माध्यम से भी व्यंजित होते हैं और कहानी के बीच-बीच में भी प्रसंगानुसार उभरते हैं । कहानी के बीच में आने वाले विचार प्रायः कथा-प्रवाह में बाधा उपस्थित करते रहे हैं परन्तु प्रस्तुत कहानियां विचारों को इस कुशलता से व्यक्त करती हैं कि न कथा-प्रवाह बाधित होता है और न ही विचार मखमल में पैबंद की तरह अलग से आकर्षित करते हैं। कहीं ये विचार संवादों के रूप में व्यक्त हुए हैं तो कहीं वर्णन के रूप में। संवाद शैली जैन आगमों में ज्ञान प्राप्ति के प्रमुख साधन के रूप में प्रयुक्त होती रही है और इस सुदृढ़ परम्परा का दक्ष उपयोग इन कहानियों में किया गया है । 'परभू के दरसन' शीर्षक कहानी में भगवान् महावीर ने फरमाया है, "हे गोत्तम! न्यूं-ए होया करै । जो भुंडे करम आदमी नै पैहल्यां कर राक्खे हों, जिब ताईं उनका फल ना भोग ले, वे कटते कोन्यां अर आपणे टैम पै परगट होया करें । नंदन मनियार बेमारी तै छूट्या-ए कोन्यां ।" यहां जैन दर्शन के कर्म सिद्धान्त को बताया गया है। नंदन मनियार के विषय में बताते हुए भगवान् महावीर इस सिद्धांत को कह देते हैं । सम्पूर्ण कथा - विन्यास के बीच में आया यह सिद्धान्त और विचार कथा प्रवाह को बाधित करने के स्थान पर गति प्रदान करता हैं। 'नंदन' नामक मुख्य पात्र की कहानी इस से और अधिक उजागर होती है । यही है 'विचार' को भी कहानी कला का अंग बनाकर उपयोग करने का सामर्थ्य, जिस से ये कहानियां सम्पन्न हैं। 'सुथराई का घमण्ड' शीर्षक कहानी में सनत्कुमार के त्रिलोक-विख्यात रूप-सौंदर्य को देखने दो देवता उनके पास आते हैं। राजदरबार में वे सनत्कुमार के सौंदर्य के साथ-साथ उसके सौंदर्य-विषयक अहंकार को भी देखते हैं। तभी उसे कोढ़ हो जाता है । वह वैराग्य भाव में निमज्जित होकर मुनि दीक्षा अंगीकार कर लेता है। वहीं दोनों देव तपस्वी मुनिवर सनत्कुमार के पास वैद्य बनकर आते हैं और उनके सम्मुख उन्हें नीरोग बना देने का प्रस्ताव रखते हैं। मुनिवर अपनी उंगली पर थोड़ा सा थूक लेकर अपने रोगी शरीर पर लगाते हैं। जहां थूक लगता है, वहीं शरीर पूर्ण स्वस्थ हो जाता है। तब मुनि सनत्कुमार कहते हैं, “सरीर के रोग मेट्टण खात्तर तै मेरे धोरै घणी-ए सिद्धी सैं। पर सरीर तै मेरा कोये बी मतलब कोन्या । यो बेमार है अक ठीक है, मन्र्ने के । मैं तै आतमा पैं चड्ढ्या होया करमां का मैल धोणा चाहूं सूं । या तै मेरी कमअकली थी अक् ईब ताई में सरीर के रूप नैं-ए देखदा रहूया ।" स्पष्ट है कि यहां एक दार्शनिक विचार रूपायित किया गया है। ध्यान देने योग्य बात यह है कि कहानी दार्शनिकता का संवहन करते हुए भी बोझिलता से पूर्णतः दूर व सुरक्षित बनी रही । वैचारिकता उभरी तो कथानक की घटनाओं के कुशल ताने-बाने से स्वयमेव उभरी, कहानी पर उसे आरोपित नहीं किया गया। यही कारण है कि एक दार्शनिक विचार भी पाठक के लिए हृदयग्राही बन गया । विचार यदि अनुभूति बन जाये तो वह साहित्यिक उपलब्धि का चरम शिखर होता है, जिसे उपरोक्त उद्धरण में लेखकीय क्षमता ने सहजता से स्पर्श किया है । अनुभूति बन जाने वाला एक और विचार 'मामन सेट के बलद' शीर्षक कहानी में भगवान् 1 (xii)
SR No.009997
Book TitleHaryanvi Jain Kathayen
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherMayaram Sambodhi Prakashan
Publication Year1996
Total Pages144
LanguageHariyanvi
ClassificationBook_Other
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy