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________________ गोपाल, महामोह को पहरि चोलना कंठ विषय की माल । तथा- अब मैं नाच्यो बहुत -सूर तुलसी ने भी "हौं प्रसिद्ध पातकी तू पाप पुंज हारी” प्रयोग लिखा है । हिन्दी के 'जाता है' को हरियाणवी में 'जावै सै' कहेंगे । यहाँ 'है' क्रिया का परिवर्तन 'सै' में हुआ है, पर जाता का जावै में रूपान्तरण भर हुआ है। दोनों भाषाओं की क्रियाओं में अलगाव और समानता दोनों ही हैं। विभक्ति परिवर्तन पर विचार करें तो भिन्नता है । वह यह कि 'घर को हरियाणवी में 'घरां' कहा जाएगा इसी तरह अव्यय शब्दों में भी भेद है- अंग्रेजी के 'हीयर' संस्कृत के 'यत्र' और हिन्दी के 'यहाँ' अव्यय की तरह हरियाणवी का अव्यय 'आड़े' है । निष्कर्ष यह कि हिन्दी के निकट और उसकी उपभाषा होते हुए भी हरियाणवी का अपना भाषा-अस्तित्व भी है । हरियाणवी का क्षेत्र यद्यपि सीमित है, फिर भी यहाँ थोड़े-थोड़े अन्तर से उच्चारण और शब्दगत रूपों में भिन्नता है जो उच्चारण रोहतक के आस-पास है, वहीं शब्द जींद और हिसार के आस-पास नहीं बोले जाते। मेरे सामने भी समस्या थी कि किस एक रूप को अपनाने से भाषा का मानक और टकसाली स्वरूप स्थिर होगा। कहीं सेठ बोला जाता है तो कहीं 'सेट' । इसी तरह टेम, टैम, सुब, सुभ, शुभ और बी, भी के शब्द भेद तथा उच्चारण भेद ने भी मुझे दुविधा में डाल दिया। इसी संदर्भ में भाषाविज्ञान के मुख-सुख और प्रयत्न लाघव ( शोर्टकट) सिद्धान्तों ने इस समस्या का हल करने में मुझे बहुत मदद दी । भाषा-विज्ञान का प्रभाव कभी बोली पर पड़ता है तो लिखित भाषा पर नहीं पड़ता और कभी दोनों पर पड़ता है। इन दोनों का प्रभाव हिन्दी पर ही देखें। दीनदयालु को दीनदयाल ही लिखा और बोला जाता है- दीनदयाल विरद संभारी। इसी तरह चंद्रवंशीय, रघुवंशीय और यदुवंशीय को क्रमशः चन्द्रवंशी, रघुवंशी और यदुवंशी बोलने-लिखने की परिपाटी बन गई है या एक मानक स्थापित हो गया है । मुखसुख और प्रयत्नलाघव का ऐसा ही प्रभाव बोली पर तो हुआ है, पर लिखित भाषा में उसको स्थापित नहीं किया गया। कुछ उदाहरण इस संदर्भ में भी । नथ और रथ में 'थ' ही बोला और लिखा जाता है, क्योंकि स्पष्ट श्रुत है । लेकिन कहीं-कहीं देखने में आता है, हाथी का 'थ' बोलने में लुप्त हो जाता है। छोटे-बड़े चिल्लाते हैं-हाती आया, हाती आया । (vi)
SR No.009997
Book TitleHaryanvi Jain Kathayen
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherMayaram Sambodhi Prakashan
Publication Year1996
Total Pages144
LanguageHariyanvi
ClassificationBook_Other
File Size19 MB
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