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ગામ્યા છી ગોર વતે છા
हुआ। सब से बडी बात यह हुई कि जैन धर्म में आपसी राग द्वेष की भावना जो सदियों से घर कर चुकी थी, इस वर्ष दम तोडने लगी। जिस का फल यह हुआ कि अब ऐसे साधु साध्वीयों को पसंद नहीं करता है जो सम्प्रदायक हो, न ही ऐसे गृहस्थ श्रावक को पसंद करता है जो आपसी वैर वैमनस्य का कारण वने । यह समिति की महान देन थी । इस वर्ष सम्प्रदायिक साहित्य समाप्त हो गया। अपनी अपनी परम्परा में रह कर सव धर्मों का सन्मान इस शताब्दी वर्ष की महान देन है । अव सभी परम्परा के साधु साध्वियां एक मंच पर प्रवचन करते हैं। जैन एकता को बढ़ावा देते हैं।
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