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________________ आस्था की ओर बढ़ते कदम श्रीमति इंदिरा गांधी के विरोधी थे। इस याचिका ने सारे कार्य पर रोक लगवा दी। अदालत ने याचिका विचारार्थ स्वीकार कर ली थी। अदालत के फैसले से तहलका मच गया। परस्पर फूट सामने आने लगी। पर ऐसे लोगों की संख्या वहुत कम थी जो अदालत में गए थे। अधिकांश जैन समाज तो इस समारोह में सरकार की सहायता चाहता था । यह वातावरण कुछ समय के लिए चल सका । अधिकांश जैन समाज सरकार के साथ था। सरकार के पक्ष में अदालत ने फैसला सुनाते हुए कहा “धर्म निरपेक्ष का अर्थ यह नहीं कि भारत धर्म विहिन राज्य है । भारत में धर्म निरपेक्षता का अर्थ है सब धर्मों का सम्मान पूर्वक स्थान देना ही धर्म निरपेक्षता है। इस दृष्टि से हर धर्म के महापुरूष का जन्म दिन मनाना सरकार का अधिकार और कर्तव्य है । भारत में धर्म निरपेक्षता का अर्थ इंगलैण्ड की तरह नहीं ।" यह असत्य पर सत्य की विजय थी। जिस महापुरूष ने संसार को अहिंसा अनेकावाद व अपरिग्रहवाद जैसे सिद्धांत प्रदान किए। स्त्री व शूद्र की दयनीय स्थिति को सुधारा । धर्म संघ में सव को बराबर का स्थान दिया । ब्राहमण तथा वेद की गुलामी से लोगों को मुक्ति दिलाई सव लोगों को धर्म करने का अधिकार प्रदान कि । जात-पात व अस्पृश्यता को जड़ से उखाड़ फेंका, ऐसे परमात्मा वर्द्धमान महावीर का २५०० साला निर्वाण महोत्सव मनाने में रूकावट डालना, महानिंदनीय कृत्य था । यह वर्ष जैन धर्म का स्वर्णिम युग था । अब हम पंजाव सरकार से पत्र व्यवहार करने में लग गए। हमारे किसी पत्र का सरकार की ओर से कभी उत्तर न आया। पर जो काम जिस घड़ी में होना होता है तभी होता है। हम प्रयास छोड़ने वाले नहीं थे। हमारे मन में 67
SR No.009994
Book TitleAstha ki aur Badhte Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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