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________________ - आस्था की ओर बढ़ते कदम हैं। धर्म साधना में जहां श्रावक, साधु को आहार पानी वहरा कर धर्म लाभ प्राप्त करता है वहां साधु साध्वी भी अपनी आशीवाद श्रावक को प्रवचन के रूप में प्रदान करते हैं। साधू श्रावक को ध्यान साधना की विधि बतलाते हैं। धर्म उपदेश देकर दान-शील-तप-भावना दृढ़ करते हैं।" गुरूणी सुधा प्राचीन श्रमणी के अनुरूप जीवन को तप द्वारा अनुशाषित करती हैं। वह श्रावक को 'अम्मापिया' समझ कर उन्हें सदमार्ग पर लाती हैं। हम दोनों को उन्हें बहुत करीव से देखने को मौका मिला है। अनेकों कष्टों में वह घबराती नहीं। वह स्वयं तपस्या करती हैं और अपनी शिष्याओं को तपस्या व स्वाध्याय करने की सतत प्रेरणा देती रहती हैं। धर्म के प्रति वह वच्चों में आर्कषण पैदा करती हैं। इल के लिए वाल गोष्टियों का आयोजन होता हैं। नवयुवकों को वह सप्तकुव्यसनों का त्याग करवाती हैं। उनकी सेवा का उदाहरण हमें अनेकों बार देखने को मिला। कभी भी कोई साध्वी विमार पडे, तो उसी समय अपना सारा ध्यान उसके उपचार की ओर देती हैं। अपनी गुरुणी की बीमारी का जव आप को पता चला, तो आप गंगानगर में थीं। एक दिन में ६० किलोमीटर लम्बा नीमा मात्र कुछ दिनों में अम्बाला पहुंचे। अपने पांव की बीमारी पर कोई ध्यान नहीं रर । वह जैन एकता की प्रतीक हैं। सभी लोग उन्हें अपना मानते हैं। लगभग ३ साल गुरूणी जी वीमार रहे। अपनी गुरुणी स्वर्णकांता की दिन रात जाग कर आपने सेवा की। इस संघ की हर छोटी बडी साध्वी ने वैसे तो साध्वी रवगंकांता जी महाराज की तन मन से सेवा की। पर साध्वी राजकुमारी जी महाराज व साध्वी श्री सुधा जी महाराज का नान स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाएगा। अपनी शिष्या परिवार के स्वारथय शिक्षा का आप को सदैव ध्यान रहता है। हमारी 276
SR No.009994
Book TitleAstha ki aur Badhte Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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