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________________ - आस्था की ओर बढ़ते कदम महाराज का जन्न १६३१ में गुजरांवाला पाकिस्तान में हुआ। आप के पिता सेट विलायती राम व माता श्री दुर्गा देवी जैन थे। आप का धर्म निष्ट परिवार था। बचपन से ही आप का मन संसार के भोग विलासों से दूर था। आप को यह कम भोग आसार लगते था। आप का भरापूरा परिवार है। विभाजन के पश्चात आप का संसारिक परिवार जालंधर में आ गया। १६४८ में प्रवर्तनी श्री राजमति का चतुनास जालंधर में था। यह गुरूणी श्री स्वर्णकांता जी महाराज का प्रथम चर्तुमास था। साध्वी जी के प्रवचन सुनने आप अपनी माता जी के साथ हर रोज जाती थीं। आप पर वैराग्य का रंग चढ़ने लगा। इस वैराग्य को सुदृढ़ करने में जालंधर शहर के ही एक सुश्रावक श्री हंस राज जैन रे महत्वपूर्ण योगदान किया। वैराग्य उतरोत्तर वढने लगा। आ... चर्चा में इस लेने लगी। आखिर वह सौभाग्य भर दिन आया जब आट ने स्वयं को गुरूणी श्री स्वर्णकांता जी नहाराज के चरण में समर्पित कर दिया। साध्वी श्री स्वर्णकांता जी महाराज ने उन्हें साध्वी जीवन के कष्टों के बारे में आप को अवगत कराया। दो वर्ष आप के परिवार वाले आप को समझाते रहे, पर आप पर संसार की वासना अपना असर ने छोड सकी। १९५० में आपने जालंधर शहर में प्रवर्तनी श्री राजमति जी महाराज के हाथों दीक्षित हुई। प्रवर्तनी श्री ने आप को साध्वी श्री स्वर्णकांता की शिष्या घोषित कर दिका। आप ने प्रवर्तनी श्री के कठोर अनुशासन व वात्सल्य को. देखा है। आप आर्कषित व्यक्तित्व की धनी है। सारा जीवन गुरूणी की आज्ञा पर पहरा दिया है। सौभाग्य से आप के शिष्या परिवार भी आप के अनुरूप ही ज्ञान वान है। आप की एक प्रशिष्या श्री चन्दना साध्वी जी ने पंजाबी विश्वविद्यालय 271
SR No.009994
Book TitleAstha ki aur Badhte Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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