SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 273
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - आस्था की ओर बढ़ते कदम समता रखना जानती थीं। आप के साहित्यक देन, संस्थाओं के निर्माण के परिचय मैं पीछे दे आया हूं। आप ने वी.ए. पंजाव यूनिवर्सिटी चंडीगढ़ से पास की थी। ___ आप का विशाल शिष्य परिवार में २४ से ज्यादा साध्वीयां हैं। आप के शिष्य परिवार में दो साध्वीयां आप की शिष्या हैं। बाकी साध्वीयां आप के शिष्य परिवार की शिष्याएं हैं। आप की दो प्रमुख साध्वीयां में सबसे बडी साध्वी श्री राजकुमारी जी महाराज व दूसरी साध्वी श्री सुधा जी महाराज हैं। साध्वी श्री स्वर्णकांता जी महाराज कई मामलों में प्रथम थीं। हमारी सभी संस्थाओं व प्रकाशनों में उनकी वल्वती प्रेरणा रही है। भारत के राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह जी ने आप को जैन ज्योति पद से अलंकृत किया। साध्वी श्री स्वर्णकांता जी गुणों की पुंज थीं। अनेकों जीवों पर उन्होंने उपकार किये। अनेकों आत्माओं को सदमार्ग दिखाया। वह संथारा साधिका थी। उनका जीवन अध्यात्म से भरपूर था। मुझे अध्यात्म का अमृत प्रदान करने वाली आप ही थीं। जीवन में स्वाध्याय करते कई वार शास्त्रीय प्रश्नों को समझने होते तो आप की शरण ग्रहण करते। उनका तप-संयम-जप महान था। वह स्पष्ट वादी थीं। बड़े गुरूओं का ध्यान रखना अपना फर्ज समझती थीं। प्रथम भेंट : मेरी आप से प्रथम भेंट अम्बाला में जैन स्थानक में २५०० साला महावीर निर्वाण शताब्दी से कुछ वर्ष पहले हुई। आप से पंजावी साहित्य की चर्चा हुई। आप ने इसकी उपयोगिता को मानते हुए स्वयं सहयोग देने की इच्छा व्यक्त की थी। उन्हीं की इच्छा के अनुरूप हम ने यह साहित्य का सृजन किया। जो उनकी देख रेख में समिति द्वारा प्रकाशित हुआ। सारा पंजावी साहित्य उनके आर्शीवाद का फल है। जो 269
SR No.009994
Book TitleAstha ki aur Badhte Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy