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________________ आस्था की ओर बढ़ते कदम - दीक्षा महोत्सव पर प्रकाशित की गई। इस पुस्तक को लिख कर, हमने महासाध्वी श्री के व्यक्तित्व व कृतित्व का उल्लेख किया है। हमें इस ग्रंथ की तैयारी में भी काफी श्रम करना पड़ा। महासाध्वी श्री स्वर्णकांता जी महाराज अपने बारे में स्वयं कुछ नहीं बताती थी । उनके शिष्य परिवार से, जो हमें अवगत हुआ वह अपर्याप्त था । इंटरनैशनल पावर्ती जैन अवार्ड देने की घोषणा श्रीमती कैंया को हुई थी । उस संबंध में एक समारोह का आयोजन उपप्रवर्तनी डा० (साध्वी) श्री सरिता जी महाराजं ने दिल्ली वाराह टुटी जैन स्थानक में रखा था । हम एक दिन पहले आयोजन हेतु दिल्ली पहुंचे थे । हम वीर नगर जैन कालोनी में महाराज श्री के वडे संसारिक आता स्व० श्री जगदीश चन्द्र जी जैन के यहां ठहरे थे। उन्हें अपनी पुस्तक और सामग्री की समस्या के बारे में बताया । उन्होंने हमें महाराज श्री के वारे में बहुत महत्वपूर्ण जानकारी दी। उन्होंने महाराज श्री के वचपन, महाराज श्री के माता पिता, महाराज श्री की घर से प्रवज्या हेतु पालिताना पलायन करना, पाकिस्तान वनना, और उनके साध्वी बनने तक का विवरण बता दिया। उनके साध्वी जीवन के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी हमें साध्वी श्री की शिष्य सरलात्मा, साध्वी श्री राजकुमारी जी महाराज से प्राप्त हुई । साध्वी श्री राजकुमारी जी महाराज उनकी प्रथम शिष्या थीं । महाराज श्री की गुरूणी परम्परा के वारे में हमें अन्य साध्वीयों ने वताया । महासाध्वी में यह गुण था कि वह लोकएषणा से दूर रहती थी। उन्हें पद की भूख नहीं थी। साहित्य में वह अपना चित्र तक प्रकाशित करने को मना करती थी । एक दिन मैंने महाराज के नाम के साथ उनका पद उपप्रवर्तनी लिख दिया। उन्होंने कहा “आप हमें पदों में मत उलझाओ, हमने घर साधना के लिए छोड़ा है। मेरा पद साध्वी है जो प्रभु महावीर की 215
SR No.009994
Book TitleAstha ki aur Badhte Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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