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________________ आस्था की ओर बढ़ते कदम संबंध पंजाव से किसी न किसी तरह रहा है। चाहे उनका जन्म पंजाव में हुआ हो, चाहे उनके धर्म प्रचार का क्षेत्र पंजाव हो। जैन समाज की विडम्बना रही है कि साध्वी परम्परा अधिक होते हुए भी साध्वीयों की कोई पट्टावली प्राप्त नहीं होती । इस का कारण य ह रहा कि पट्टावली हमेशा आचार्यों की होती है। आचार्य पुरूष चुना जाता है, चाहे यह जैन सिद्धांत नहीं पर परम्परा है। श्वेताम्बर जैन परम्परा में तो स्त्री तीर्थकर वन सकती है । १६वीं तीर्थंकर भगवती मल्लीनाथ का इतिहासक वर्णन ज्ञाता धर्म कथांग सूत्र में मिलता है । इस पुस्तक में हम कम साध्वीयों का वर्णन कर पाए हैं। इस का कारण साध्वीयं स्वयं भी हैं तीर्थंकर परम्परा ने उन्हें वरावर स्थान दिया । पर श्रद्धा व संकोच वश उन्होंने अपना इतिहास सुरक्षित नही रखा। साध्वीयों के नाम हरतलिखितों में आये हैं। अपने सुन्दर लेखन के कारण साध्वीयां शास्त्रों की प्रतिलिपियां करती थी पर साध्वीयों ने अकेली प्रतिलिपियां ही नहीं करती थीं, उन्होंने जैन इतिहास में कई नए प्रकारण जोड़े हैं । कई आचायों को पढ़ाने का श्रेय उन्हें प्राप्त हैं कई साध्वीयां अच्छी लेखिका, शास्त्रार्थ करने वाली व कवियित्री भी हुई हैं उन साध्वी ने कई वार जैन धर्म की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण कार्य किये हैं । प्रस्तुत पुस्तक अपने में महत्वपूर्ण है । विद्वानों ने इस की प्रशंसा की है। यह इतिहास की पुस्तक है। नई-पुरानी साध्वी परम्परा का संगम है | महाश्रमणी ३ : यह हमारी तृतीय हिन्दी रचना है। इस रचना का प्रकाशन पंजावी जैन साहित्य की प्रेरका जिन शासन प्रभाविका, जैन ज्योति श्री स्वर्णकांता जी महाराज के ४०वें 214
SR No.009994
Book TitleAstha ki aur Badhte Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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