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________________ =ાસ્યા ol ગોર તો ૮મ करने का समय आ गया है। वस यह पुस्तक हमारे प्रगाढ़ संबंधों को मजबूत करने का साधन वनी। हमें सभी सम्प्रदायों के संत, साधु-साध्वीयों के आशीवाद प्राप्त होने लगे। यह प्रथम जैन पुरतक थी जिसे किसी प्रकाशन ने विक्री हेतु, हमारी संस्था से खरीदा। हम इस के माध्यम से बहुत से अंतराष्ट्रीय स्तर के जैन विद्वानों से साक्षातकार का अवसर मिला। जैन धर्म अते दर्शन ३. श्रमण संघ के तृतीय पट्टधर आचार्य श्री देवेन्द्र मुनि जी महाराज नहान प्रभावक आचार्य थे। उन्होंने सारा जीवन जैन साहित्य को समर्पित किया था। उन्होंने ४५० से अधिक ग्रंथों का निर्माण प्रकाशन अपनी जिंदगी में किया। जिसमें जैन कथा, दर्शन, आचार, पुरातत्व, साहित्य, ज्योतिष, तर्क, कर्म, आत्मा आदि अनेकों विषयों पर उन्होंने ग्रंथ लिखे। वह सिद्धहस्त लेखक थे। हमारी उनसे प्रथम भेंट गोनिला (हरियाणा) में हुई, जव हम निरयावलिका सूत्र के लिए आशीवाद लिखवाने गए। वह इतने पद पर पहुंच कर भी बड़े सरलात्मा थे। पंजाव में उनका स्वागत अम्बाला शहर में हमारी गुल्गी साध्वी श्री स्वर्णकांता जी महाराज की देख रेख में हुआ। उनका प्रथम चर्तुमास लुधियाना में था। . चर्तुमास में हर रविवार को दर्शन करने जाते थे। एक दिन उन्होंने हमें कहा “आप हमारे साहित्य में किसी ग्रंथ का पंजावी भाषा में अनुवाद करो, जो सव लोगों के लिए उपयोगी हो" आचार्य श्री की वात क्या कहें, ऐसा लेखक व वक्ता मैंने अपने जीवन में कम देखा है। जिस का सारा जीवन साहित्य को समर्पित हो। वह विश्व के हर धर्म के जानकार थे। वह पन्म अहिंसक थे। पंजाब में डेरा वस्सी में खुल रहे वुच्चडखाने की उन्होंने मुख्य मंत्री श्री वेअंत सिंह 184
SR No.009994
Book TitleAstha ki aur Badhte Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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