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________________ - Rथा की ओर बढ़ते कदम वह तो इन्द्रजालियों का काम है, विद्वानों का नहीं। पर आप की इच्छा पूर्ति व जैन धर्म की प्रभावना हेतु यह कार्य मैं करूंगा। आप ऐसा कीजिए। मेरे शरीर को ४८ तालों वाली कोटड़ी में कैद कर दीजिए। मुझे ४८ हाथ कड़ीयां पहना दीजिए। फिर आप के प्रश्न का समाधान मिलेगा।" . राजा ने आचार्य श्री की परीक्षा हेतु उन्हें ४८ तालों वाली कोठड़ी में ४८ तालों वाली जंजीरों से वांध दिया। सारी उज्जैनी नगरी चमत्कार की प्रतीक्षा कर रही थी। सभी तालों के आगे सैनिक तैनात कर दिये ताकि कोई आचार्य श्री मानतुंग की सहायता न कर सके। आचार्य श्री ने प्रथम तीर्थकर भगवान ऋषभदेव की स्तुती प्रारम्भ की। प्रथम श्लोक को बोलते ही प्रथम कोटड़ी का ताला व प्रथम जंजीर का एक ताला टूट गया। इस प्रकार आचार्य श्री ने भक्तों को अमर वनाने वाला स्तोत्र रच डाला। अपने नगवान को इस से सुन्दर स्तुति संस्कृत साहित्य में अन्य मुश्किल से उपलब्ध हो । इस तरह ४८ श्लोकों की रचना के बाद सभी ताले टूट गए। आचार्य श्री बंधन मुक्त हो कर राजा भोज के सामने आए। आचार्य श्री के इस चमत्कार के प्रभाव से राजा भोज जैन धर्म का परम उपासक वन गया। उसे जैन साहित्य में जैन राजा माना गया है। यह सव भक्तामर स्तोत्र का निर्माण आचार्य मानतुंग की प्रभु भक्ति के प्रभाव से हुआ। ___ हमारे द्वारा इस स्तोत्र का पंजाबी भाषा में प्रथम अनुवाद करके इसे प्रकाशित किया गया। जिस का विमोचन करने का सौभाग्य मेरे धर्म भ्राता श्री रविन्द्र जैन ने मुझे दिया। यह स्तोत्र महाप्रभावक फल देने वाला है। इस के हर श्लोक में मंत्र, यंत्र, तंत्र बने हैं। इस स्तोत्र में तीर्थकर में समोसरण के अतिशयों, प्रतिहार्य का सुन्दर वर्णन है। 176
SR No.009994
Book TitleAstha ki aur Badhte Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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