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________________ - - आस्था की ओर बढ़ते कदम को आकर चमत्कार दिखाने को कहे" राजा ने जैन श्रावकों _को बुला कर ब्राह्मणों की बात कह डाली। श्रावकों ने ब्राह्मण की घोषना सुनकर कहा “इस समय उज्जैनी नगरी में विराजित आचार्य मानतुंग चमत्कारी आचार्य हैं। आप उन्हें बुलावा भेज दीजिए, वह इस प्रश्न का समाधान अवश्य करेंगे।" राजा भोज ने आचार्य मानतुंग को दरवार में आने का निमंत्रण दिया। आचार्य श्री अपने समय के प्रकाण्ड पंडित थे। आचार्य श्री ने दरवार में आना स्वीकार कर लिया। वह महल के दरवाजे तक नहुंचे। उनके सामने विद्धानों ने एक घी का कटोरा प्रस्तुत किया। आचार्य श्री ने एक सिलाई उस में घोंप दी। श्रावकों ने इस कटोरी का रहस्य जानना चाहा, जिस के उत्तर में आचार्य श्री ने कहा "भव्य जनों ! घी से भरे कटोरे का अर्थ यह है कि उज्जैनी नगरी विद्वानों से ठसा-ठस भरी पड़ी है। आप के लिए यहां स्थान नहीं। मैंने सिलाई घोंप कर उन्हें बता दिया है कि जैसे भरे कटोरे में सिलाई स्थान बना लेती है, उसी तरह मैं भी आप के विद्वानों में स्थान बना सकता हूं।" आचार्य श्री मानतुंग दरवार में पधारे। राजा __ भोज ने प्रश्न किया “अगर आप में शक्ति है तो मेरे विद्वानों से शास्त्रार्थ कर उन्हें हराओ।" ' आचार्य श्री ने ईश्वर कृर्ता के प्रश्न पर सव को । हरा दिया और अपने प्रमाणों से मिद कर दिया कि ईश्वर सृष्टि का कर्ता नहीं, वह तो मुक्त आत्मा की अवस्था का नाम है। फिर राजा ने कहा, “आप अपनी शक्ति का चमत्कार दिखाएं।" आचार्य श्री ने कहा "राजन ! आत्मा से वड़ा कोई चमत्कार नहीं। तुम्हारे विद्वान जो कार्य कर रहें हैं 175
SR No.009994
Book TitleAstha ki aur Badhte Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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