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________________ - आस्था की ओर बढ़ते कदम जिसको जैन समाज सदैव याद रखेगा। आप ने श्वेताम्बर स्थानक वासी समाज में टीका, चूर्णि, नियुक्ति, भाष्य व संस्कृत पढ़ने की परम्परा डाली, ताकि लोग शास्त्रों को ठीक ढंग से समझ सकें। आप पहले पंजाव जैन संघ के उपाध्याय वने फिर आचार्य। फिर आप को समस्त जैन समाज ने श्रमण संघ का प्रथम आचार्य सम्राट नियुक्त किया। आप हिन्दी भाषा में जैन आगमों के प्रथम टोकाकार हैं। आप ने अनेकों देशी विदेशी विद्वानों को अपने आगम ज्ञान व चमत्कारों से प्रभावित किया। आप ध्यान योगी थे। हमेशा आप का जीवन श्री संघ को आगे बढाने की योजनाओं में लगा रहता। कैंसर जैसा रोग आ जाने पर भी आप इस का आप्रेशन विना कलोरोफोरम सूघे करवाया। आप की सहनशीलता ला-मिसाल थे। आप कभी किसी में दोष नहीं देखते थे। अंत रामय आप के शरीर को वीमारीयों ने इतना घेरा कि लोग आचार्य श्री से पूछते कि क्या बात है ? आप जैसे महापुरुषों को रोग क्यों घेरता है ? आप तो हमेशा ध्यानस्थ रहने वाले हैं। यह बात हमारी समझ से परे है ? । महाराज श्री जी फुरमाते "भव्य जीवो ! मैं अपने कमों का कर्जा इस धरती पर उतारना चाहता हूं। __ मरने के बाद भी हम कर्जदार रहें, फिर इस साधना का क्या फल ? हर दुःख से मेरे कर्म झड़ते हैं। इस प्रक्रिया से मुझे समाधि प्राप्त होती है।" आचार्य श्री महान राष्ट्र भक्त थे। भारत के वड़े वड़े राज नेता इन से विमर्श करने आते थे। इन से कई विषयों पर विमर्श करते थे। आपने आजादी की लड़ाई में अपना योगदान डाला। पंडित जवाहर लाल नेहरू रावल पिंडी में आप से मार्ग दर्शन प्राप्त करने आए। ३० जनवरी १९६२ __ को आप का समाधि मरण लुधियाना में हुआ। इतने महान 100
SR No.009994
Book TitleAstha ki aur Badhte Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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