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________________ जाग्रत होता है, कषायें मन्द होती हैं और मन की एकाग्रता होती है। मन मदोन्मत्त हाथी के समान है । उसको रोकने के लिये स्वाध्याय रूपी जंजीर ही एक उपाय है। जिसने स्वाध्याय से मन को स्थिर करने का अभ्यास किया है, उसी का चित्त स्थिरता को प्राप्त होता है । चित्त की एकाग्रता से ध्यान की सिद्धि होती है और ध्यान से कर्मों का क्षय होकर मोक्ष की प्राप्ति होती है । 'नीतिवाक्यामृत' में लिखा है अनालोकं लोचनमिवाशास्त्रं मनः कियत् पश्येत ।। 1 ।। अनधीतशास्त्रश्चक्षुष्मानपि पुमानन्धः । । 2 ।। अलोचनगोचरे ह्यर्थे शास्त्रं तृतीयं लोचनं पुरुषाणां । । 3 ।। किं नामान्धः पश्येत् । । 4 । । जिस प्रकार बिना प्रकाश के अंधेरे में रखे हुये पदार्थों का भी पूरा ज्ञान नेत्रों द्वारा नहीं होता, उसी प्रकार बिना शास्त्रों के अनुभव पढ़े कुछ भी सत्य कर्तव्य का ज्ञान नहीं होता । ज्ञान-नेत्र का उद्घाटन शास्त्र - स्वाध्याय से ही होता है, बिना शास्त्र ज्ञान के चक्षु होने पर भी मनुष्यों को नीतिकारों ने अन्धा बताया है | 2 | जो पदार्थ चक्षु द्वारा प्रतीत नहीं होता, उसे प्रकाश करने के लिये शास्त्र ही समर्थ है। यह शास्त्रज्ञान मनुष्यों का तीसरा नेत्र है। क्योंकि शास्त्रज्ञान के बिना अन्धे पुरुष को क्या प्रतीत हो सकता है । स्वाध्याय का महत्व बताते हुये 'सागार धर्मामृत' में लिखा है विनेयवद्विनेतृणापि स्वाध्यायशालया । । "बिना विमर्शशून्यधीर्दृष्टेऽप्यन्धायते ऽध्वनि” । स्वाध्याय करने से यथावद्वस्तु के स्वरूप का ज्ञान होता है। मानसिक व्यापार अशुभ प्रवृत्ति से हटकर शुभ प्रवृत्ति की ओर आकृष्ट होता है। अर्थात् मन वश में हो जाता है। आत्मा में से राग-द्वेष दूर होकर आत्मा विशुद्ध हो जाता है। स्वाध्याय करने से क्रोध, मान, माया, लोभादिक कषायों से आत्मा पराङ्मुख होता है। मोक्ष के मार्ग (सम्यग्दर्शन - ज्ञान - चारित्र) में प्रवृत्त होता है। स्वाध्याय से मैत्री बढ़ती है। 'मूलाचार' ग्रंथ के पंचाचाराधिकार में लिखा है 97 S
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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