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________________ किन्तु उस आँवे पर एक बूंद भी पानी न आया। इसके बाद उस कन्या का पिता आया। उसने पूछा कि इतनी वर्षा होने पर भी इस आँवे पर पानी नहीं पड़ा, क्या कारण है? इस प्रकार आश्चर्य में पड़े हुये अपने पिता को उस कन्या ने मुनिराज ने जो उसकी परिक्रमा दी थी वह वृतान्त कह सुनाया । कुंभकार अपनी कन्या को लेकर इन चमत्कारी मुनिराज के पास गया और कहने लगामहाराज! आपने मेरी कन्या को साथ लेकर उस आँवे की परिक्रमा दी है, अतः यह कन्या आपसे विवाहित हो गई । अब मैं इसको अन्य को कैसे दे सकता हूँ? आपको इसको अपने पास रखना होगा । पूर्वभव के कर्मों के सम्बन्ध से मुनिराज ने उसके साथ फिर विवाह कर लिया और कुंभकार के घर पर ही रहकर बर्तन बनाने लगे। पीछी और कमंडलु को निम्ब के पेड़ पर रख दिया तथा मुनिवेष को त्याग दिया । कुछ दिन पश्चात् मालव देश में कोई विवाद हुआ, उस सभा में उसका निर्णय न हो सका। इसका निश्चय माघनन्दी आचार्य के द्वारा ही हो सकेगा, ऐसा निश्चय करके वे अन्वेषण करते-करते कुंभकार के घर पर आये और माघनन्दी से, जो उस समय बर्तन बना रहे थे, आकर पूछा कि मुनि माघनन्दी कहाँ मिलेंगे? उन्होंने "मुनि" इस विशेषण से युक्त अपना माघनन्दी नाम सुना, तो तुरन्त बोध हो गया और कहा कि वह मैं ही हूँ। ऐसा कहकर उनकी शंका का समाधान किया और विचारा - अहो! मैं अब भी मुनि कहलाता हूँ और मेरी यह दशा है। उन्होंने उसी समय कुंभकार की लड़की से विदा लेकर पिच्छि कमंडलु ले लिया और पुनः मुनिदीक्षा धारण कर ली तथा यह प्रायश्चित लिया कि जब - पाँच व्यक्ति जैनधर्म से दीक्षित न हों, तब तक भोजन नहीं करेंगे। अतः वे प्रतिदिन 5 व्यक्तियों को जैनधर्म की दीक्षा देकर भोजन करते थे। उन्होंने इस प्रतिज्ञा का यावज्जीवन निर्वाह किया । तक भगवान् महावीर स्वामी के निर्वाण के पश्चात् लगभग 634 वर्ष व्यतीत होने पर विक्रम संवत् 84 में श्री धरसेन नाम के आचार्य हुये । आप उज्जैन नगरी के पास चन्द्र गुफा में विराजमान थे । वहाँ पर आपको रात्रि में ऐसा स्वप्न आया कि तुम्हारी आयु थोड़ी रह गई है तथा श्रुत का विच्छेद होनेवाला है। आपको 95 S
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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