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________________ सेठानी ने कहा कि झूठ है । इन सब बातों को राजा मकान के पीछे खड़ा सुन रहा था। पहले राजा लोग प्रजा का सुख - दुःख जानने को रात में गश्त लगाया करते थे। जब राजा ने यह सब सुना तो सोचा कि सुबह होने दो, सुबह छेटी सेठानी को बुलाऊँगा और पूछूंगा कि इन सब कथाओं को तूने झूठ क्यों कहा? कुछ कथाएँ राजा पर भी गुजरी हुई थीं। जब सुबह हुई, तो राजा ने बड़े सम्मान से छोटी सेठानी को बुलाया और पूछा कि रात्रि में जो सम्यग्दर्शन की कहानियाँ हो रही थीं, सो तू उन्हें झूठ क्यों कहती थी? राजा ने कहा कि वे सच तो थीं । तो छोटी सेठानी ने मुख से तो कुछ उत्तर नहीं दिया और सब गहने, आभूषण और कपड़े आदि उतार कर केवल एक साड़ी पहनकर वहाँ से जंगल के लिए चल दी और कहा कि महाराज ! वे सेठानियाँ केवल बातें कर रही थीं, व्यवहार में तो नहीं ला रही थीं, वे तो केवल बातें - ही- बातें थीं । यदि समता परिणाम उत्पन्न होता है तब तो समस्त क्रियायें ठीक हैं, अन्यथा केवल बातें-ही- बातें हैं, वे सारी क्रियायें असत्य हैं। धर्म का काम तो अपने आपकी आत्मा ही में लीन होने के लिये होता है। सो समता परिणाम जगे, तब तो हमारी पूजा - भक्ति आदि सभी क्रियायें सत्य हैं। जब तक अपने आपका आत्मतत्त्व अपने उपयोग में दृढ़ता से स्थित न हो जाये, तब तक जन्म-मरण का संसार नहीं छूटता । यदि संसार से मुक्त होना चाहते हो तो भगवान् के स्वरूप को अनुभव में लो। हम भगवान् की भक्ति क्यों करते हैं? क्योंकि हमें जो करना चाहिए वह मार्ग उनसे मिलता है। जब-जब ज्ञान में प्रभु का स्वरूप आता रहेगा, तब-तब इस जीव के कर्मकलंक ध्वस्त होंगे और मुक्ति के मार्ग का अनुभव होगा। मोक्ष का जो आनन्द है, वह आत्मा के शुद्ध स्वभाव का ही आनन्द है । भगवान् अपने स्वभाव में लीन हैं, उनको देखकर हम भी अपने स्वभाव को याद कर सकते हैं, उनके जैसा होने की भावनाएँ / रुचि को मजबूत करके उनके बताये हुये मार्ग पर चल कर निज परमात्मा बनने का उपाय कर सकते हैं। देखो, जगत् में रुलते- रुलते चौरासी लाख योनियों में भ्रमण करते-करते आज आपने यह मनुष्यभव व जिनेन्द्र भगवान् के द्वारा बताया गया जिनधर्म 82 S
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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