SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 81
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उसके पास बाहर में चाहे कितने ही आडम्बर हों, वैभव हों, फिर भी शांति नहीं हो सकती है। समता की बड़ी महिमा है, ऋषिगण जिसके सामने झुकते हैं, राजा-महाराजा भी झुकते हैं। यह समता बड़े-बड़े मुनियों द्वारा पूज्य है । समता परिणाम बना रहे, यही सबसे बड़ी सम्पदा है। प्रभु से यही माँगो कि मेरे में मोह न जगे, सदा समता परिणाम बना रहे । श्रद्धावृत्तं श्रुतं ज्ञानं सत्यं साम्यं भवेद्यद । तदैव स्वसुखं स्वास्थ्यं स्यां स्वस्मै स्वे सुखी स्वयम् । 18-55 ।। यह श्रद्धा, यह चारित्र, यह आगम का अभ्यास, यह ज्ञान हमारा तब सत्य माना जायेगा जब मेरे में समता परिणाम जगे । बड़े परिश्रम से तो कोई भोजन बनावे और भोजन बनाकर मूर्खता से, पागलपन से या किसी से लड़-झगड़कर बाद में कूड़े में फेंक दे, तो आप उसके भोजन बनाने के पुरुषार्थ को क्या सच्चा काम कहेंगे? क्या आप बेवकूफी न कहेंगे? इसी प्रकार जितनी श्रद्धा है, चारित्र है, ज्ञान है, भगवान् की पूजा - भक्ति है, ये सब इसलिये किये जाते हैं कि मेरे में समता पैदा हो। यदि धर्म के ये कार्य करके भी चित्त में समता परिणाम न लाना चाहते हो तो उसे विवेक नहीं कहा जायेगा । भगवान् की पूजा-भक्ति की उपलब्धि यही है कि हमारे और भगवान् के बीच जो अन्तर है, दूरी है या भिन्नता है, वह घटती चली जाये। भगवान् वीतराग हैं और हम निरन्तर राग-द्वेष में लगे हुये हैं । यही उनके और हमारे बीच फर्क है। हम भक्ति के माध्यम से उनसे जुड़ें, उनसे निकटता बनायें, उनका सामीप्य प्राप्त करें, तो ही भक्ति सार्थक होगी। भगवान् से जुड़ना यानी वीतराता से जुड़ना, अपने वीतराग स्वरूप की ओर रुझान होना है। भगवान् को प्राप्त करना यानी उनके जैसे बनना । उनके जैसी वीतरागता अपने भीतर प्रकट करना है। एक बार अरद्धा सेठ ने अपनी आठ रानियों से पूछा कि तुम्हें सम्यक्त्व कैसे उत्पन्न हुआ? जरा अपनी कहानी तो बतलाओ । बड़ी सेठानी ने सम्यक्त्व की कहानी कही। सबने कहा – सच है, मगर छोटी सेठानी ने कहा कि झूठ है। सब सेठानियों ने सम्यक्त्व की कहानी कही, तो सब ने कहा- सच है, पर छोटी DU 81 S
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy