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________________ सम्यग्दर्शन का कारण बताते हुए पंडित श्री दौलतराम जी ने 'छहढाला' में लिखा है देव जिनेन्द्र, गुरु परिग्रह बिन, धर्म दयाजुत सारो। येहु मान समकित को कारण, अष्ट-अंग-जुत धारो।। जिनेन्द्र भगवान्, परिग्रह रहित गुरु और दयामय धर्म सम्यग्दर्शन के कारण हैं। भगवान् की ऐसी भक्ति करो कि स्वयं भगवान् बन जाओ, जिस प्रकार सुगंधित पुष्प के योग से तेल भी शुद्ध हो जाता है। इस आत्मा में सिद्ध बनने तक की शक्ति है, जिसे हम देव-शास्त्र-गुरु का आलम्बन लेकर प्रकट कर सकते हैं। सम्यग्दर्शन के बिना मुक्ति होने वाली नहीं है। वीतराग जिनेन्द्र भगवान्, जिनवाणी व निर्ग्रन्थ गुरु इन्हीं के माध्यम से सम्यग्दर्शन होने वाला है और किसी से होनेवाला नहीं है। धर्म के स्वरूप की व्युत्पत्ति बताते हुए आचार्य पूज्यपाद स्वामी लिखते हैं कि “सम' उपसर्गपूर्वक “अच धातु" से 'सम्यक्' शब्द की निष्पत्ति होती है, जिसका अर्थ है हितकारी । अर्थात् जिसमें आत्महित निहित हो, वही 'सम्यक् है तथा ऐसे सम्यक् श्रद्धान को 'सम्यग्दर्शन' कहा गया एक बार भगवान् महावीर स्वामी से शिष्य ने पूछा-हे भगवन्! संसार से पार होने का सरल उपाय क्या है? "संसार-विच्छित्तेः कारणं किम्"? तब भगवान् ने कहा कि आप रोज स्वाध्याय करो, वीतराग वाणी को सुनो-पढ़ो, इसी से आप मोक्षमार्ग में प्रवेश कर सकते हैं। यदि आप शास्त्र नहीं पढ़ सकते हैं, तो पंचपरमेष्ठी-वाचक ‘णमोकार मंत्र' जपो। ‘रयणसार' ग्रंथ की पाँचवीं गाथा में आचार्य कुन्दकुन्द महाराज ने सम्यग्दृष्टि का स्वरूप बताते हुये लिखा भव-वसण-मल-विवज्जिद संसार-सरीर-भोग-णिव्विण्णो। अट्ठ-गुणंग-समग्गो, सणसुद्धो हु पंचगुरु-भत्तो।।5।। निर्दोष सम्यग्दर्शन का धारक निश्चय ही सप्त भय, सप्त व्यसन और पच्चीस दोषों से रहित, संसार, शरीर और भोगों से विरक्त, अष्टांग (निःशंकितादि) 0770
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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