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________________ | आवश्यकापरिहाणि भावना । सब जीवों पर समता रखें, स्तुति पढ़ें नित भक्ति से। देव गुरु को नमन करें, और ध्यान करें निज शक्ति से।। प्रतिक्रमण कर क्षमा माँग, और प्रत्याख्यान को अपनावें। आवश्यक क्रिया सब पालें, समवसरण वैभव पावें।। सभी जीवों पर समताभाव रखना, भक्ति के साथ तीर्थंकरों की स्तुति पढ़ना, देव-शास्त्र-गुरु को नमन करना, अपनी शक्ति के अनुसार ध्यान करना, प्रतिक्रमण कर सभी जीवों से क्षमा माँगना और प्रत्याख्यान को अपनाना अर्थात् षट् आवश्यक क्रियाओं का पालन करना आवश्यकापरिहाणि भावना है। जो अवश्य करने योग्य है, उसे आवश्यक कहते हैं। आवश्यकों की हानि नहीं करने का चितवन वह आवश्यक परिहाणि नाम की भावना है। यहा आवश्यक के साथ अपरिहाणि जोड़ा गया है कि यथायोग्य आवश्यकों का पालन प्रतिदिन करना है, निर्धारित समय पर करना है और विपरीत परिस्थितियों के निर्मित होने पर भी अपने आवश्यक को नहीं छोड़ना है। आवश्यक का अर्थ है जो 'अवश' या 'अवशी' के द्वारा किया गया है। उसे आवश्यक कहते हैं। जो अपनी इन्द्रिय और मन के वश में नहीं है यानी इन्द्रिय व मन को जिसने ‘वश' में कर लिया है, उसे 'अवश' कहते हैं। ऐसे मुनिराजों की क्रियाओं को आवश्यक कहते हैं। आवश्यकों के छ: भेद हैं :- सामायिक, स्तवन, वंदना, प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान, कायोत्सर्ग । 0 765 u
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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