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________________ गये प्रश्नों का (भूत, भविष्य, वर्तमान, की अपेक्षा से दिये गये उत्तर का) वर्णन है।10। विपाकसूत्रांग के एक करोड़ चौरासी लाख (1,84,00,000) पदों में कर्मों का उदय, उदीरणा, सत्ता का वर्णन है |11 | (इस प्रकार ग्यारह अंगों का चार करोड़ पन्द्रह लाख दो हजार (4,15,02,000) पदों में वर्णन किया है।) दृष्टिवाद नाम के बारहवें अंग के एक सौ आठ करोड़ अड़सठ लाख छप्पन हजार पाँच (108,68,56,005) पदों में मिथ्यादर्शन को दूर करने का वर्णन है। दृष्टिवाद अंग के पाँच भेद हैं- परिकर्म, सूत्र, प्रथमानुयोग, पूर्व, चूलिका |12| बारह अंगों में कुल एक सौ बारह करोड़ तेरासी लाख अट्ठावन हजार पाँच (1,12,83,58,005) पद हैं। उपाध्याय परमेष्ठी बड़े मधुर शब्दों द्वारा राग छोड़ने की प्रक्रिया बताते हैं। भैया! यह राग तो एक-न-एक दिन छोड़ना पड़ेगा तथा राग-द्वेष रहित वीतराग अवस्था को एक-न-एक दिन तो अवश्य ही धारण करना पड़ेगा, तभी मुक्ति की प्राप्ति हो सकेगी। तब क्यों अपना समय नष्ट करके दुःख में रुलते फिर रहे हो? इसके लिये कोई अवस्था विशेष निश्चित नहीं है कि वृद्धावस्था में ही रागद्वेष छोड़ना चाहिये या अमुक अवस्था में त्याग करना चाहिये। ये तो जितने शीघ्र छूट जावें, उतना ही अच्छा है। जैसे-जैसे राग-बुद्धि करोगे, वैसे-वैसे ही कर्मबन्ध होते जायेंगे और जैसे-जैसे वीतराग होओगे, तो कर्म स्वयं तड़ातड़ टूटते चले जायेंगे। अतः अपना आत्महित पहचानो। आपका स्वभाव पापरूप नही है। स्वयं का सहज-स्वभाव चेतन है, ज्ञानपुंज है। जब यह जीव अपने सहज स्वरूप को पहचान लेता है, तब परम सुखी हो जाता है और जब तक अपने आप को नहीं पहचानता, तब तक दुःखी बना रहता है। सम्यग्दर्शन होने पर इसे दृढ़ श्रद्धान हो जाता है कि मैं शरीर नहीं हूँ और न ही शरीरादि परद्रव्य मेरे हैं। आज तक मैं भ्रम से su 747 0
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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