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________________ शक्तितस्त्याग भावनाँ मुनि आर्यिका श्रावक श्राविका को नित देते चारों दान । निज शक्ति के अनुसार ही करते पात्रों का सम्मान ।। भोगभूमि सु प्राप्त करें वे, और स्वर्गों में राज करें। देवगति से चयकर प्राणी, नरभव धर स्वराज वरें ।। अपनी शक्ति अनुसार मुनि, आर्यिका श्रावक, श्राविका को चारों प्रकार का दान देना तथा उनका सम्मान करना चाहिये। जो शक्ति के अनुसार दान देते हैं, त्याग करते हैं, वे देवगति को प्राप्त करते हैं तथा स्वर्गों में राज करते हैं और वहाँ से च्युत होकर मनुष्य होते हैं तथा संयम साधकर स्वराज (मोक्ष) प्राप्त करते हैं । बाह्य व अन्तरंग दोनों प्रकार के परिग्रह से ममता छोड़ने से त्यागधर्म होता है। मोक्षमार्ग में त्याग का बहुत महत्व है। इससे सर्व संकट दूर हो जाते हैं । यह मेरा है, इस प्रकार का जो विकल्प है, उसको छोड़ना है। त्याग और दान के बिना न व्यक्ति का जीवन चलता है और न समाज का । जो बुरा है, उसे त्यागो। राग-द्वेष का त्याग और औषधि, शास्त्र, अभय और आहार का दान करना, यही धर्म है। इसके बिना न जीवन चल सकता है, न धर्म पल सकता है, न साधना हो सकती है और न साध्य की प्राप्ति हो सकती है। 'बारस अणुवेक्खा' ग्रंथ में आचार्य कुन्दकुन्द महाराज ने त्याग की परिभाषा बताते हुये लिखा है णिव्वेगतियं भावइ, मोहं चरइऊण सव्वदव्वेस । जो तस्स हवेचागो, इदि भणिदं जिणवरिंदेहिं । ।78 । । जो मुनि समस्त परद्रव्यों से मोह छोड़कर संसार, शरीर और भोगों से 686 2
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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