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________________ घिरा हुआ है। इस संसार में जीव पंचपरावर्तन करता है और नरक गति में मार-काट का दुःख, पशुगति में छेदन-बन्धन का दुःख तथा मनुष्य और देवगति में विपत्तिमय जीवन व्यतीत करता है। जैसे गरम अधन (उबलते पानी) में चावल के दाने चारों तरफ दौड़ते हुए पकते हैं, उसी प्रकार संसारी जीव कर्मों से तपाया हुआ चारों गतियों में परिभ्रमण करता हुआ दुःख उठाता है। पुत्र का स्वरूप- पुत्र के मोह से परिग्रह में बड़ी मूर्छा बढ़ती है। यदि वह समर्थ हो जाये, किन्तु अपनी आज्ञा में नहीं चले, तो परिणाम बहुत आर्तरूप हो जाते हैं। यदि अपने जीवित रहते हुये युवा पुत्र का मरण हो जाय तो अपनी मृत्युपर्यन्त महादुःखी रहता है, कष्ट नहीं मिटता है। जब तक पुत्र पिता को अपना काम करने वाला समझता है, तब तक पिता से प्रेम करता है, जब पिता काम करने में असमर्थ हो जाता है, तो उनसे प्रेम नहीं करता है, लेकिन यदि पिता धनरहित हो तो उनका निरादर करता है। इसलिए पुत्र का स्वरूप समझकर पुत्र से राग छोड़कर परम धर्म से राग करो। पुत्र के लिये अन्याय से धन परिग्रह आदि को ग्रहण करने का परित्याग करो। स्त्री का स्वरूप- स्त्री भी मोह नाम के ठग की बड़ी फाँसी है, ममता उपजानेवाली है, तृष्णा को बढ़ानेवाली है। स्त्री में तीव्रराग होने से वह धर्म में प्रवृत्ति का नाश करनेवाली है, लोभ को बहुत अधिक बढ़ानेवाली है, परिग्रह में मूर्छा बढ़ानेवाली है, ध्यान-स्वाध्याय में विघ्न करनेवाली है, झगड़े की जड़ है, दुर्ध्यान का स्थान है, मरण बिगाड़नेवाली है इत्यादि दोषों का मूलकारण जानकर स्त्री के प्रति रागभाव छोड़कर वीतराग धर्म से अपना राग बढ़ाओ। __ मित्र का स्वरूप- इस कलिकाल के मित्र भी विषयों में ही उलझाने वाले हैं, सभी व्यसनों में फँसानेवाले सहायक हैं। जिनको धनवान् देखते 10 680_n
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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