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________________ संवेग भावना संसार, शरीर और भोगों से विरक्ति का नाम संवेग है। यह ही शांति का कारण है। ऐसा जानकर संवेग का आदर होना, संवेग की भावना करना, यह है संवेग भावना। संवेग का दूसरा अर्थ यह भी है कि धर्म में अनुराग करना। और धर्म के फल में अनुराग करना, यह भी संवेग कहलाता है अथवा इन दोनों को जोड़कर यह अर्थ करना कि संसार, शरीर व भोगों से विरक्त होकर धर्म व धर्म में अनुराग करना, इसका नाम है संवेग भावना। वैराग्य भाव से भरे हुए हैं, माता भ्राता पर माने। तन से मोह ममत्व तजें, वे अन्तर आतम प्रकटाने।। पर से प्रीति विशेष करें, और धर्मध्वजा फहराते हैं। कल्याणक वे पंच प्राप्त कर, सिद्धशिला बस जाते हैं।। (सिद्धान्त शतक) जो वैराग्यभाव से परिपूर्ण हैं, माता-पिता, भाई-बहिन आदि को पर मानते हैं तथा स्वयं के परमात्मा को प्रगट करने के लिये तन से मोह और ममत्व को छोड़ते हैं, समस्त संसारी जीवों के प्रति प्रीति भाव रखते हैं, वे जीव पंचकल्याणक से सुशोभित हो सिद्धशिला पर विराजमान हो जाते हैं। संसार का स्वरूप- यह संसार दुःख का दावानल है। संसार में नाममात्र को भी सुख नहीं है, क्योंकि यहाँ का हर प्राणी जन्म-जरा-मृत्यु रोगों से 10 679_m
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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