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________________ चाहिए। अरे ! अन्य पदार्थों में उपयोग देकर कौन-सी सिद्धि कर ली जायेगी? चेतन और अचेतन दोनों प्रकार के ही तो परिग्रह हैं। बाहर में किसमें उपयोग देकर कौनसी आत्मा की सिद्धि कर ली जायेगी और एक निज ज्ञानस्वरूप में उपयोग बने तो कर्म भी कटेंगे, संकट टलेंगे, मोक्षमार्ग मिलेगा, शाश्वत आनन्द मिलेगा। ऐसे ज्ञान के उपयोग की निरन्तर भावना बनावो। अपना उपयोग अपने ज्ञायकस्वरूप में ही ठहर जाय, रागादिक के वशीभूत न हो, तो इसमें ही अपना हित है। यही अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोग है। जो शिष्यजन हैं और जो कम पढ़े-लिखे हैं, उनको भी ज्ञान की बातें सिखाना, उपदेश करना, पढ़ाना, यह सब भी ज्ञानोपयोग है। संसार का यथार्थस्वरूप, शरीर का यथार्थस्वरूप, भोगों का यथार्थस्वरूप चिंतन में रहना, यह भी ज्ञानोपयोग है। कोई ज्ञानोपयोग उत्कृष्ट ज्ञानोपयोग का सहायक है और कोई ज्ञानोपयोग साक्षात् ज्ञानोपयोग है। सर्वद्रव्यों के बीच में पड़ा हुआ भी, मिला हुआ भी यह निज आत्मा भिन्न प्रतीति में आये, अनुभव में आये, यह है उत्कृष्ट ज्ञानोपयोग। ज्ञानाभ्यास करने से, इस ज्ञानस्वरूप उपयोग के होने से विषयों की वांछा नष्ट हो जाती है। 'ज्ञानाभ्यास करे मन माहीं, ताके मोह महातम नाहीं।' ज्ञान एक प्रकाश है। जैसे सूर्य का और अन्धकार का एक जगह निवास नहीं हो सकता है, जहाँ सूर्य का प्रकाश है वहाँ अंधेरा नहीं है, ऐसे ही जहाँ ज्ञानप्रकाश है, वहाँ मोहांधकार का एक आत्मा में निवास नहीं हो सकता है। जिस आत्मा में ज्ञानप्रकाश है उस आत्मा में मोहांधकार नहीं ठहर सकता है। दुःख है तो मात्र मोहांधकार का है। एक भी जीव दुःखी नहीं है, किन्तु सबके चित्त में जुदे-जुदे प्रकार का मोह है। किसी का किसी वस्तु में राग है, किसी का किसी वस्तु में राग है। इस मोह/राग के कारण सभी जीव परेशान हैं। यह परेशानी अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोग के प्रसाद से मिट सकती है। cu 676 a
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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