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________________ चाहिये। उज्ज्वल शील ही मोक्षमार्ग का बड़ा सहायक है। जिसके उज्ज्वल शील है। उसको मोक्षमार्ग में इन्द्रियाँ, विषय-कषाय, परिग्रह आदि विघ्न नहीं कर सकते हैं। 3।। - इस दुर्लभ मनुष्यजन्म में प्रतिक्षण ज्ञानोपयोगरूप ही रहना चाहिये। सम्यग्ज्ञान बिना एक क्षण भी व्यतीत नहीं करो। जो अन्य संकल्प-विकल्प संसार में डुबोने वाले हैं, उनका दूर ही से परित्याग करो। 4 । धर्मानुरागपूर्वक संसार, शरीर, भोगों से वैराग्यरूप संवेगभावना का हमेशा मन में चिंतवन करना चाहिये। इससे सभी विषयों में अनुराग का अभाव होता है तथा धर्म के फल में अनुरागरूप दृढ़ प्रवर्तन होता है। 5 | ____ अंतरंग में आत्मा के घातक लोभादि चार कषायों का अभाव करके अपनी शक्ति अनुसार सुपात्रों के रत्नत्रयादि गुणों में अनुराग करके चार प्रकार के दान में प्रवृत्ति करनी चाहिये। 6।। अंतरंग-बहिरंग दोनों प्रकार के परिग्रह में आसक्ति छोड़कर समस्त विषयों की इच्छा का अभाव करके अत्यन्त कठिन तप को अपनी शक्ति अनुसार करना चाहिये। 7 । चित्त में रागादि दोषों का निराकरण करके परम वीतरागतारूप साधु के समान समाधि धारण करना चाहिये। 8 । संसार के दुःख व आपदाओं का निराकरण करनेवाला दश प्रकार का वैयावृत्य करना चाहिये। 9। अरहन्त के गुणों में अनुरागरूप भक्ति को धारण करते हुये अरहन्त के नामादि का ध्यान कर भक्ति करनी चाहिये। 101 ____ पाँच प्रकार के आचार का जो स्वयं आचरण करते हैं, अन्य शिष्यों-मुनियों को कराते हैं, दीक्षा शिक्षा देने में निपुण, धर्म के स्तंभ, ऐसे आचार्य परमेष्ठी के गुणों में अनुराग करना वह 'आचार्य भक्ति' है। 11। निरन्तर ज्ञान में प्रवर्तन करनेवाले, करानेवाले, चारों अनुयोगों के v 644 u
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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