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________________ 5. बल मद - जिस आत्मिक बल से कर्मरूपी बैरी को जीता जाता है, काम-क्रोध-लोभ को जीता जाता है, वह बल प्रशंसायोग्य है। इस शारीरिक बल का क्या अहंकार करना? आज शरीर तगड़ा है, पर जोर का बुखार आ जाये, चार-छ: लंधन हो जावे, तो सूरत बदल जाये, उठते न बने। साता कर्म के उदय से शरीर हृष्ट-पुष्ट हो, तो जीव मान लेता है कि मैं बलवान हूँ। पर ध्यान रखना, शरीर दोनों भिन्न-भिन्न हैं। बीस साल का युवक, जो अपने दोनों हाथों से दो व्यक्तियों को ऊपर उठा लेता था, वही जीव मरण के सम्मुख हुआ, उसमें कुछ बोलने, अपने शरीर को हिलाने तक की भी शक्ति न रही और दूसरे दो व्यक्तियों ने उसे उठाया। देह का बल आत्मा का कहाँ है? और देह के निर्बल होने पर आत्मा कहाँ निर्बल हो जाता है? देह के बल को पाकर यदि कोई दुराचारों में प्रवर्तन करे, तो वह बल प्रशंसायोग्य नहीं है। वह बलमद तो नरकादि दुर्गतियों के दुःख भोगकर अन्त में एकेन्द्रियों में समस्त बलरहित कर देगा। अतः बल का मद छोड़कर संयम धारण करके उत्तम तप करना योग्य है। ज्ञानी पुरुष शरीर बल से विशिष्ट भी हों, तो भी उनके बल का मद नहीं होता है। शरीर का बल तो बल का विकार है। आत्मा का बल अनन्त बल है। वह बल यदि ढक गया और शरीर बल के रूप में कुछ-कुछ प्रकट हो रहा है, यह विकार है। इस बल का क्या गर्व करना? वह बल क्या चीज है ? यहाँ के दो-चार दुबले फोकस लोगों के मुकाबले में कुछ बल हो गया तो क्या हो गया ? सर्वोत्कृष्ट बल तो नहीं कहलाया। और जिसमें सर्वोत्कृष्ट बल है, उनके तो अभिमान ही नहीं होता। सबसे अधिक बल बताया है तीर्थंकरदेव की अंगुली में। देखो 19-20 बकरों में जितना बल है, उतना बल शायद एक गधा में होगा। 10-5 गधों में जितना बल है, उतना बल एक घोड़े में होता होगा। 10-5 घोड़ों में जितना बल है, उतना बल एक भैंसा में होता होगा। 10-5 भैसों 0635_n
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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