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________________ साथ लग गया। उस राजा ने जब गंगास्नान करके विश्वनाथ के दर्शन कर लिये, तब पण्डे ने अपनी भेंट उस राजा से माँगी। राजा उसको 100 रुपये देने लगा, पण्डे ने कहा कि नहीं, राजा साहब! प्रथा के अनुसार भेंट में आप मुझे अपनी रानी दे दें । पण्डे की ऐसी अनुचित बात सुनकर उस युवक राजा ने पण्डे की मरम्मत करने के लिये अपना हण्टर उठाया। उसी समय उसकी माता ने अपने पुत्र का हाथ पकड़ कर कहा कि तू तीर्थ में आकर यह क्या अनर्थ करता है? पण्डा ठीक तो कह रहा है, तू पहले अपनी बहू को उसे भेंट कर दे, फिर इससे रकम ठहरा कर अपनी बहू को वापिस ले लेना । तेरे पिता के साथ जब मैं यहाँ तीर्थयात्रा करने आई थी, तब तेरे पिता ने भी मुझे इस पण्डे के पिता को दान कर दिया था, पीछे रुपये देकर मुझे वापिस ले लिया था । तुझे भी इस धर्मप्रथा का पालन करना पड़ेगा । युवक राजा ने कहा कि मैं ऐसी अन्धश्रद्धा को नहीं मानता। तब उसकी माता बोली कि यदि तुझे यह अन्धश्रद्धा दिखती है, तो यहाँ तीर्थयात्रा करने क्यों आया था और मुझे क्यों लाया था ? यदि इस तीर्थधर्मप्रथा का पालन न करेगा, तो मेरा भी अन्न-पानी का त्याग है। वृद्ध माता की हठ के सामने उसको झुकना पड़ा। उसने अनिच्छा से पण्डा से कहा कि अच्छा, मैंने तुझे अपनी रानी दान की । तदनन्तर उसने पांच सौ रुपये पण्डे को दिखलाते हुए रानी को वापिस माँगा । पण्डा था निर्लज्ज, वह बोला कि मैं तो दान में मिली हुई चीज नहीं लौटाता । राजा को क्रोध तो बहुत आया, परन्तु माता के डर से उस क्रोध को पी लिया और उसने दान की हुई रानी को लौटाने के लिये क्रम से पण्डे को रकम बढ़ानी शुरू की और 10 हजार रुपये तक कह दिये, पर पण्डा न माना। अन्त में राजा ने कहा कि रानी के समस्त आभूषण लेकर रानी वापिस कर दे। पण्डा इस पर भी राजी न हुआ । तब वह राजा और अधिक रकम का प्रबन्ध करने के बहाने मोटर में बैठकर सीधा कलेक्टर के 6242
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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