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________________ जोड़कर नमस्कार करते हैं, दीपक से आरती उतारते तथा फल-फूल चढ़ाते हैं और उन मील के पत्थरों के सामने अपने मन की अनेक कामनाएँ करते हैं। प्रयाग में जो कुम्भ का मेला हुआ था, उसकी एक अन्धश्रद्धा का आँखों-देखा दृश्य एक विद्वान् ने पत्रिका में प्रकाशित करवाया था। उसने लिखा था कि मैंने एक स्थान पर तिलक लगाये हुए एक व्यक्ति को पुरोहित गुरु का रूप बनाये देखा। उसके साथ एक अच्छी सजी-सजायी गाय थी। उसने लोगों की भीड़ में पहले संस्कृत श्लोक बोलते हुए गाय की आरती उतारी, उसको तिलक लगाया, फिर संस्कृत श्लोक गुनगुनाते हुए उसकी पूजा की। तदनन्तर उस गौपूजा का क्रियाकाण्ड को देखने वाले भोले यात्री स्त्री-पुरुषों से कहा कि यह गौ माता मृत्यु के बाद नरक की वैतरणी से पार कर देगी। अभी जो व्यक्ति पाँच रुपये भेंट करके इसकी पूंछ पकड़ लेगा, मृत्यु के बाद यह गौ उस मनुष्य को वैतरणी नदी के किनारे पर खडी हई मिलेगी। उस समय भी इसकी पंछ पकड लेना। यह गौ माता वैतरणी नदी में कूद कर तुमको दूसरे किनारे पहुँचा देगी। उपस्थित लोगों में से अनेक अन्धश्रद्धालु स्त्री-पुरुष सामने आ गये और पाँच-पाँच रुपये उस गाय के मालिक उस पुरोहित-रूप-धारी व्यक्ति को देकर उस गाय की पंछ पकडने लगे। सबसे पहले जिस मनष्य ने गाय की पूँछ पकड़ी ली, उसने अधिक भेंट दी थी, बाद में 5-5 रुपये भेंट देने वालों में से एक मनुष्य ने उस मनुष्य के कन्धे पर हाथ रख लिया, तदनन्तर उसके पीछे-पीछे क्रम से भेंट करने वाले स्त्री-पुरुष एक दूसरे के कन्धे पर अपना हाथ रखते गये, इस तरह उस गाय की पूंछ से परम्परा संबंध जोड़ कर खड़े होने वाले स्त्री-पुरुषों की एक लम्बी लाइन लग गई। । उस समय एक करीब अन्धश्रद्धालु के हृदय में भी वैतरणी नदी पार करने की भावना जाग्रत हुई और उसने भी प्रयागराज पर इस अवसर से 10_622_n
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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