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________________ कहने मात्र नामभेद है, वस्तु भेद नहीं है। कोई गंगा, सरस्वती, यमुना, गोदावरी इत्यादि नदियों को तारण तरण मानते हैं। कोई जल, पृथ्वी, पवन, वनस्पति इनमें परमेश्वर का रूप मानते हैं । कोई भैंरो, क्षेत्रपाल, हनुमान को मानते हैं, कोई गणेश को पार्वती का पुत्र मानते हैं । चन्द्रमा को समुद्र का पुत्र मानते हैं। ऐसा विचार नहीं करते कि गंगादि नदी जड़-अचेतन हैं, वे कैसे तारेंगी ? गाय तो पशु है, सो कैसे तारेगी? और उसकी पूँछ में तैंतीस करोड़ देव कैसे रहेंगे? तथा समुद्र तो एकेन्द्रिय जल है, इसलिए इसके चन्द्रमा पुत्र कैसे होगा? तथा हनुमान को पवन (वायु) का पुत्र कहते हैं, सो एकेन्द्रिय पवन के पंचेन्द्रिय महापराक्रमी देव सदृश मनुष्य कैसे उत्पन्न हुआ? हनुमान पवनन्जय नाम के महामंडलेश्वर राजा का पुत्र है, सो यह बात संभावित होती है तथा बालि, सुग्रीव, हनुमान आदि वानरवंशी महापराक्रमी विद्याधरों के राजा हैं। वे बंदर का रूप बना लेते हैं। तथा और भी अनेक प्रकार के रूप बना लेते हैं । सो उनके इस प्रकार की हजारों विद्यायें थीं, उनसे अनेक आश्चर्यकारी चेष्टाएँ बनाते रहते थे। तथा कोई यह कहते हैं कि यह तो बन्दर हैं, तो ऐसा विचार नहीं करते कि तिर्यंच (बंदर) के ऐसा बल और पराक्रम कैसे होगा, जो संग्राम में लड़ाई करें, तथा राम - चन्द्र जी आदि राजा को बताने (बोलते रूप, बात करने) का ज्ञान कैसे होगा? तथा वे (बंदर) मनुष्य के समान कैसे भाषा बोलते होंगे? इसी प्रकार रावण आदि राक्षसवंशी विद्याधरों का राजा अपनी राक्षसी विद्या आदि हजारों विद्याओं से बहुत प्रकार के रूप आदि (धारण कर) नाना प्रकार की क्रियाएँ करते थे । तथा यदि लंका स्वर्ण (कंचन) के समान थी तो अग्नि से कैसे जली? तथा कोई इस प्रकार कहता है कि शेषनाग ने फण के ऊपर धरती को धारण किया है, तो धरती सदा अचल है तथा सुमेरू भी अचल है, किन्तु कृष्ण जी ने सुमेरू की मथानी बनाई और शेषनाग (वासुकि) को निमंत्रित किया तथा समुद्र का मंथन किया और U 618 S
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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