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________________ नहीं करना चाहिये तथा जिनेन्द्र भगवान्, दिगम्बर मुनि और जिनवाणी के अतिरिक्त जो कुगुरु आदि हैं, उन्हें कभी नमस्कार नहीं करना चाहिये। यही षट् अनायतन त्याग है। अनादिकाल से खोटे गुरुओं के उपदेश सुनकर वैसा आचरण करने से, कुदेवों की सेवा–भक्ति करने से और खोटे धर्म रूप आचरण करने तथा इन तीनों को मानने वालों की संगति तथा प्रशंसा करके अहर्निश संसार को बढ़ाया है। खोटे/कुदेवों को देव मानना देवमूढ़ता, कुगुरुओं को गुरु मानना गुरुमूढ़ता तथा मिथ्याधर्मी लोगों का आचरण देखकर नदी, सुमुद्र आदि में स्नान करने से, पाषाण के ढेर लगाने से, पर्वत से गिरने से, अग्नि में गिरने से आदि मिथ्या क्रियाओं से धर्म मानना लोकमूढ़ता है। खोटे देव-शास्त्र-गुरु इन तीन और इन तीनों को मानने वालों की प्रशंसा करना इन छह आदि का स्वरूप बताते हुये पंडित श्री दौलतराम जी ने 'छहढाला' ग्रंथ में लिखा है जो कुगुरु-कुदेव-कुधर्म सेव, पोर्षे चिर दर्शनमोह एव । अन्तर रागादिक धरें जेह, बाहर धन अम्बरतें सनेह ।। घारै कुलिंग लहि महत भाव, ते कुगुरु जन्म-जल उपल-नाव । जे राग-द्वेष मल करि मलीन, वनिता गदादिजुत चिह्न चीन।। ते हैं कुदेव, तिनकी जु सेव शठ करत, न तिन भव-भ्रमण छेव । रागादि भावहिंसा समेत, दर्वित त्रस थावर मरण खेत।। जे क्रिया तिन्हैं जानहुँ कुधर्म, तिन शरधैं जीव लहैं अशर्म । __ जो राग-द्वेष रूपी मोहमैल से मलिन हैं, स्त्री, गदा, मुकुट आदि रखते हैं, वे कुदेव हैं। जो मूर्ख लोग ऐसे कुदेवों की सेवा करते हैं, उनके भव भ्रमण का अन्त नहीं आता। ___ जो अन्तर में मिथ्यात्व और रागादिक सहित हैं तथा बाह्य में धन-वस्त्रादिक का स्नेह रखते हैं, शुद्ध दिगम्बर दशा के अतिरिक्त अन्य 609
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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