SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 608
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ | सम्यग्दर्शन के पच्चीस दोष । सम्यग्दर्शन प्राप्त हो जाने पर उसे शुद्ध और निर्मल बनाना अनिवार्य है। निर्मल सम्यग्दर्शन ही संसारभ्रमण को नष्ट करने में समर्थ होता है। जिस प्रकार आटे में जरा-सी धूल मिलने पर आटे की रोटी का स्वाद नष्ट हो जाता है, उसी प्रकार 25 दोष धूल के समान होते हैं। इन्हें न करना ही निर्मल सम्यग्दर्शन को प्राप्त करना है। अतः उनसे बचने के लिये उन्हें जानना आवश्यक है। मूढ़त्रयं मदश्चाष्टौ तथाऽनायतनानि षट् । अष्टौ शंकादयश्चेति दृग्दोषाः पंचविंशतिः।। अष्ट महामद अष्ट मल, षट् अनायतन विशेष । तीन मूढ़ता संजुगत, दोष पचीसों एष।। तीन मूढ़ता (देव मूढ़ता, गरु मूढ़ता, लोक मूढ़ता), आठ मद, छह अनायतन, आठ शंकादि दोष- ये सब मिलाकर 25 दोष होते हैं। सम्यग्दर्शन 25 दोषों से रहित होता है। छह अनायतन व तीन मूढ़ताः _छह अनायतनों व तीन मूढ़ताओं का वर्णन करते हुये पंडित श्री दौलतराम जी ने लिखा है कुगुरु कुदेव कुवृष सेवक की, नहिं प्रशंस उचरै है। जिनमुनि जिनश्रुत बिन, कुगुरादिक तिन्हैं न नमन करे है। खोटे गुरु, खोटे देव और खोटे धर्म तथा इनके सेवकों की प्रशंसा 0 6080
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy