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________________ वज्रकुमार के प्रति द्वेष होने लगा। एक बार तो वह यहाँ तक कह गई"अरे! यह किसका पुत्र है जो यहाँ आकर हमें परेशान कर रहा है?" इस बात को सुनते ही वज्रकुमार का मन उदास हो गया। उसे ज्ञात हुआ कि उसके माता-पिता कोई और हैं। तब विद्याधर से उसने सम्पूर्ण हकीकत जान ली, तब उसे मालूम हुआ कि उसके पिता दीक्षा लेकर मुनि हो गये हैं। तुरन्त ही वह विमान में बैठकर उन मुनिराज की खोज में निकल पड़ा। एक दिन जब वज्रकुमार का विमान एक पर्वत के ऊपर से जा रहा था, तो वहाँ उसने पर्वत की चोटी पर एक मुनिराज को ध्यान-साधना करते हुए देखा। उसने अपना विमान वहाँ उतारा तो देखता है कि वे सोमदत्त मुनिराज ही हैं। ध्यान में विराजमान सोमदत्त मुनिराज को देखकर वह बहुत प्रसन्न हुआ। इस विचित्र दुःखमय संसार के प्रति उसे वैराग्य हुआ। उसके मन में मुनिदीक्षा लेने के भाव हो गये। वजकमार ने परम भक्ति से मनिराज की वन्दना की और कहा- "हे पूज्य देव! मैं इस दुःखमय संसार से घबराया हूँ। मैं जान गया हूँ कि इस संसार में आत्मा के अलावा कुछ भी मेरा नहीं है। मैं सच्चे सुख की प्राप्ति करना चाहता हूँ, इसलिए आप मुझे मुनिदीक्षा दीजिए।" सोमदत्त मुनि ने उसकी परीक्षा करने के लिये पहले तो उसे दीक्षा न लेने के लिए बहुत समझाया, परन्तु वज्रकुमार के दृढ़ निश्चय को देखकर और उसे निकटभव्य जानकर मुनिराज ने उसे मुनिदीक्षा दे दी। निर्ग्रन्थ वीतरागी साधु बन कर वे आत्मा के ज्ञान-ध्यान में रहने लगे। धर्म की प्रभावना करते हुए वे देश-विदेश में विहार करने निकले। एक बार उनके प्रताप से मथुरा नगरी में धर्मप्रभावना का एक अनोखा प्रसंग बना। मथुरा नगरी में एक गरीब अनाथ लड़की जूठन खाकर पेट भरती 06010
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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