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________________ महाराज ने अपने मन्त्र के प्रभाव से कमण्डलु में फूलों का निर्माण कर दिया। सभी मुसलमान हतप्रभ होकर देखने लगे, चारों तरफ जैनधर्म की जय-जयकार होने लगी। वे मुसलमान भी जैन बन गये ओर जैनधर्म की बड़ी प्रभावना हुई। जिनमार्ग की महिमा जगत में कैसे प्रसिद्ध हो और संसारी जीव धर्म को कैसे प्राप्त करें, ऐसी प्रभावना का भाव धर्मात्मा को होता है। वह अपनी पूर्ण शक्ति से ज्ञान, वैभव, तप, तन, मन, धन से व जिनमंदिर बनवाकर तथा अनेक महोत्सवों द्वारा धर्म की प्रभावना करता है। श्रीसमन्तभद्र आचार्य, स्वामी अकलंकदेव आदि ने जैनधर्म की बड़ी भारी प्रभावना की थी। कभी धर्म पर संकट आये, वहाँ धर्मीजीव बैठा नहीं रहता। जिस प्रकार शूरवीर योद्धा युद्ध में छिपा नहीं रहता, उसी प्रकार धर्मात्मा धर्म के प्रसंग में छिपता नहीं है। धर्मप्रभावना के कार्य में वह उत्साह से भाग लेता सम्यग्दृष्टि की सदैव यह भावना रहती है कि- जिस तरह यह मार्ग मुझे उपलब्ध हुआ है, वह सभी को मिले, सभी लोगों का अज्ञानरूपी अंधकार दूर हो और सत्यधर्म का पालन करें। जिसे ज्ञान का प्रकाश मिल जाता है, वह चाहता है कि यह प्रकाश सर्वत्र फैले । प्रभावना अंग के बारे में समन्तभद्र आचार्य ने लिखा है अज्ञानतिमिर-व्याप्तिमपाकृत्य यथायथम् । जिनशासनमाहात्म्य प्रकाशः स्यात् प्रभावना।।18 || अज्ञान के अंधकार को यथासंभव तिरोहित कर जिनशासन के माहात्म्य को प्रकाशित करना, धर्म की महिमा को सब ओर फैलाना 'प्रभावना' है। अज्ञानरूपी अंधकार सारे लोक में छाया है। उसे अपाकृत दूर करो। यथा-यथम्, जैसे संभव हो वैसे। 'जिनशासनमहात्म्य प्रकाशः स्याद् प्रभावना' – जिनधर्म की महिमा और उसके ज्ञान के प्रकाश का 10 5960
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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