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________________ प्रभावना अंग प्रभावना का अर्थ है- पतन से उत्थान की यात्रा के लिये कदम बढ़ा देना। धर्म की प्रभावना के लिये हमें ऐसा जीवन जीना चाहिये कि वह दूसरों के लिये आदर्श बन जाये । प्रभावना का अर्थ है अपनी भक्ति को, श्रद्धा को, आचरण को इतना निर्मल बना लेना कि दूसरा उसे ग्रहण करने को लालायित हो जाये । हमारा जीने का ढंग इतना श्रेष्ठ हो, भक्ति, श्रद्धा, त्याग दयामय हो कि दूसरा भी उसी प्रकार जीने की आकांक्षा से भर जाये। आचार्य कार्तिकेय स्वामी ने कहा है- "मिथ्यात्व, विषय - कषाय, हिंसादि पापरूप समस्त विभाव परिणामों के प्रभाव को हटाना व्यवहार प्रभावना है।" जब व्यवहार सुधरता है, तब सहज ही व्यक्ति आकर्षित होता है। प्रभावना तो आचरण से होती है, मात्र व्याख्यान से नहीं होती । बाह्य प्रभावना करने के लिये पंचकल्याणक पूजा, विधान आदि कराना, जिनवाणी छपवाना, जिनेन्द्र भगवान् का रथ ठाट-बाट से मुख्य मार्गों में भ्रमण कराना, बेला-तेला आदि उपवास करना, विद्या एवं मंत्र आदि के द्वारा जिनधर्म की महिमा जगत में प्रसिद्ध करना चाहिये। आचार्य विद्यानन्द जी महाराज ने मंत्र के द्वारा जिनधर्म की प्रभावना की थी । एक बार मुस्लिम शासकों ने आचार्य विद्यानन्दजी महाराज को पकड़ लिया और सभा के मध्य अपमानित करके कहने लगे कि आप सड़कों पर नग्न घूमते हैं। अहिंसावादी बनकर कमण्डलों में मछलियाँ लेकर ढोंग करते हैं। और उन्हें बन्धन में बाँधकर रख दिया । मन्त्र से मुस्लिम मंत्रियों कमण्डलु में मछलियाँ पैदा कर दीं, पर मन्त्र के ज्ञाता विद्यानन्द जी 595 2
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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