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________________ परमात्मा बन गये। ऐसे भी जीवों का वर्णन है जिन्हें केवल मुनिराज के दर्शन हुए मात्र से वे देवगति में जन्में और वहाँ कि आयु पूर्ण कर मनुष्य भव पाया, तब तीनों ही देव, शास्त्र, गुरु का निमित्त प्राप्त हो गया। ऐसे जीव कुछ ही भव में परम पद को प्राप्त हो गये। जिनेन्द्र भगवान् की भक्ति की महिमा का वर्णन करते हुये आचार्य समन्तभद्र महाराज ने लिखा है देवेन्द्रचक्र महिमान ममेयमानं, राजेन्द्रचक्र भवनीन्द्र शिरोर्चनीयम्। धर्मेन्द्रचक्रमधरीकृत सर्वलोकं, लब्ध्वा शिवं च जिनभक्तिरूपैति भव्या।। जिनेन्द्रभक्ति में परायण भव्यजीव देवेन्द्रों के समूह के महत्त्व को, राजाओं से पूजनीय चक्रवर्ती के चक्ररत्न को तथा तीनलोक को दास बनाने वाले धर्मचक्र का प्रवर्तन करने वाले तीर्थंकर पद को प्राप्त करके मुक्ति को प्राप्त करता है। भगवान की भक्ति से पापों का क्षय व सातिशय पुण्य का संचय होता है। भगवान् की पूजा का मुख्य उद्देश्य परमात्मा के गुणों की प्राप्ति का होना है। भगवान् के जैसे गुणों की प्राप्ति के लिए परमात्मा की पूजा-भक्ति करना हमारा परम कर्त्तव्य है। भगवान् की पूजा-भक्ति करने से हमारे भव-भव से बंधे हुये पापकर्म क्षण भर में नाश को प्राप्त हो जाते हैं और हमारे हृदय में शान्ति, ज्ञान, विरक्ति एवं सुख का संचार होता है। भगवान् की शान्त मुखमुद्रा का दर्शन आत्मा के शुद्धीकरण में निमित्त-कारण है। भगवान् का ध्यान, भगवान् के अलौकिक चारित्र का स्मरण हमको अपनी आत्मा की याद दिलाता है। हमें यह मालूम पड़ता है कि मैं कौन हूँ और मेरी आत्मशक्ति क्या है? जो लोग भगवान् की पूजा–भक्ति नहीं करते, वे अपने आत्मीय गुणों से परान्मुख और अपने आत्मलाभ से वंचित रहते हैं। अरहन्त प्रभु के पूज्य गुणों के स्मरण से हमारा चित्त पवित्र होता है, हमारी पाप परिणति छूटती है। भगवान् की भक्तिरूपी चाबी से ही मोक्षमार्ग का ताला खुलता है। जिनेन्द्र भगवान् की भक्ति की अचिन्त्य महिमा है। 'समाधिभक्ति' में कहा है cu 590
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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