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________________ पंडित जी थोड़े भी लेट हो जाते, तो एक मुनिराज को कपड़ा पहना दिये जाते। संसार में किस साधक को कब चारित्रमोहनीय कर्म का उदय आ जाये, कहा नहीं जा सकता। मुनि पुष्पडाल को आया, मुनि माधनन्दि को आया, द्वीपायन मुनि को आया, रथनेमि को आया। कुछ परिणामों की विचित्रता थी। पर सम्यग्दृष्टि जीव तो वारिषेण मुनिराज के समान सदा स्थितिकरण करने का ही प्रयास करता है । भगवान् महावीर के समय में राजगृही नगरी में राजा श्रेणिक का राज्य था। उनकी महारानी चेलनादेवी और पुत्र वारिषेण था । राजकुमार वारिषेण की अत्यन्त सुन्दर 32 रानियाँ थीं। इतना होने पर भी वह वैरागी था और उसे आत्मा का ज्ञान था। राजकुमार वारिषेण एक समय उद्यान में ध्यानस्थ थे। उधर से ही विद्युत नामक चोर एक कीमती हार की चोरी करके भाग रहा था । उसके पीछे सिपाही लगे थे। पकड़े जाने के भय से हार को वारिषेण के पैर के पास फेंक कर वह चोर एक तरफ छिप गया। इधर राजकुमार को ही चोर समझकर राजा ने उसे मौत की सजा सुना दी, परन्तु जैसे- ही जल्लाद ने उस पर तलवार चलाई, वैसे ही वह वारिषेण के गले में तलवार के बदले फूल की माला बन गई। ऐसा होने पर भी राजकुमार वारिषेण तो ध्यान में मग्न थे। ऐसा चमत्कार देखकर चोर को पश्चाताप हुआ। उसने राजा से कहा- “असली चोर तो मैं हूँ, यह राजकुमार निर्दोष है।" यह बात सुनकर राजा ने राजकुमार से क्षमा माँगी और उसे राजमहल में चलने को कहा । परन्तु इस घटना से राजकुमार वारिषेण के वैराग्य में वृद्धि हुई और दृढ़तापूर्वक उन्होंने कहा - "पिताजी ! यह संसार असार है। अब बस होओ। राज-पाट में मेरा चित्त नहीं लगता। मैं आत्मकल्याण करना चाहता हूँ। इसलिए अब तो मैं दीक्षा लेकर मुनि बनूँगा । 566 2
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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