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________________ देता है, क्योंकि विकलांग मनुष्य को वैशाखी का सहारा मिल जाता है तो वह अशक्त होकर भी सशक्त बनकर वैशाखी के सहारे मीलों की यात्रा तय कर लेता है; उसी प्रकार मनुष्य किसी कारणवशात् या दर्शन व चारित्रमोहनीय कर्मोदय के कारण से दर्शन व चारित्र से च्युत होता है तो उसे धर्मात्माजनों को सहज प्यार, दुलार देकर संभालना चाहिये। अगर हम किसी गिरते हुये को उठायेंगे तो हमारा पुण्यकर्म हमें संभालेगा। स्थितिकरण अंग कह रहा है कि इस संसार में कोई जानबूझकर पतित हो रहा है, कोई परिस्थितिवशात् हो रहा है, तो कोई मोहवशात् । गर्म को छोड़ रहा है, उसे संभालना आवश्यक है। पर आज का व्यक्ति इसके विपरीत चल रहा है। उसकी भावना दूसरे को उठाने की नहीं, मिटाने की, गिराने की है। एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से बड़े प्रेम से पूछ रहा था कि अगर मैं माउण्ट एवरेस्ट की चोटी पर चढ़ जाऊँगा, तो तुम मुझे क्या दोगे? दूसरा कहता है- धक्का! हम भी धक्का देने में माहिर हैं। हमारी आदत गिराने की है, उठाने की नहीं है। पर स्थितिकरण का अर्थ है- हृदय की सरलता, मन की सहजता, दया से ओत-प्रोत हो जाना। जिसका हृदय करुणा, से मैत्री से, सहजता से भरा होता है, वही दूसरों को उठा सकता है। आचार्य बता रहे हैं- किसी कारण या परिस्थितिवश यदि कोई साधर्मी बन्धु अपनी धार्मिक श्रद्धा से डिग रहा हो अथवा अपने व्रत, शील, संयम आदि सदाचार के मार्ग से भ्रष्ट होकर कुमार्गगामी बनने जा रहा हो तो उस समय उसे मार्गभ्रष्ट न होने देकर जिस प्रकार भी हो सके उसकी धार्मिक श्रद्धा शिथिल न होने देना और सदाचारी बनाए रखकर उसे चारित्र भ्रष्ट न होने देना स्थितिकरण अंग है। __ शरीर में कोई रोग आ जाये, व्यापार में अचानक बड़ा नुकसान हो जाये, स्त्री-पुत्रादि का वियोग हो जाये, विषयों में मन चलित हो जाये, उस 0559_n
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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