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________________ कम नहीं देता, तब तक उसको चैन नहीं पड़ती। एक बार तीन विद्वान् इकट्ठे हुये। तीनों एक दूसरे को अपनी कमजोरी बताने लगे। पहले ने कहा- क्या बताऊँ ? मैं बहुत अच्छे प्रवचन देता हूँ, लोग मुझसे बड़े प्रभावित होते हैं, पर मेरी एक कमजोरी है कि मैं जितनी अधिक त्याग की बातें करता हूँ, मेरे अन्दर विलासिता के प्रति उतना ही राग बढ़ता जाता है। मेरा चित्त बहुत विलासी है। मैं भोग और वासना से अपने आपको बचा नहीं पाता। ये मेरी बहुत बड़ी कमजोरी है। दूसरे ने कहा- क्या बताऊँ ? मेरी भी एक बहुत बड़ी कमजोरी है। मैं जब तक मुँह में तम्बाकू नहीं दबा लेता, तब तक उपदेश देने का मूड़ ही नहीं बनता, और जब मैं तम्बाकू दबाकर उपदेश देता हूँ, तो सारी जनता भाव-विभोर हो जाती है। दोनों की बात सुनकर तीसरा अपना पेट पकड़कर जाने लगा तो दोनों ने कहा- भैया! तुम अपनी कमजोरी तो बताओ। वह बोला- मेरी एक बहुत बड़ी कमजोरी है कि जब मैं किसी की उसे जब तक दूसरों को सुना नहीं देता तब तक मेरे पेट में दर्द रहता है। मैं अभी सबको बताकर आ रहा हूँ, फिर सब बात समझना। अभी तो मेरे पेट में बहुत तेज दर्द हो रहा है। यह हमारी कषाय का परिणाम है जो दूसरों के दोषों को कहने में थोड़ा भी संकोच नहीं होता, उल्टा आनन्द आता है। आज व्यक्ति की स्थिति ऐसी हो गई है कि किसी की कमजोरी सुन लेने के बाद जब तक वह उसे चार लोगों को सुना नहीं देता, तब तक उसके पेट में दर्द होता रहता है। परन्तु उपगूहन अंग को धारण करनेवाला सम्यग्दृष्टि दूसरों के दोषों को नहीं देखता, वह केवल अपने ही दोषों को देखता है। कबीरदास जी ने लिखा है बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलया कोय। जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।। एक शिष्य निःस्वार्थ भाव से अपने गुरुजी की सेवा करता था। 0 554_0
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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