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________________ हमेशा के लिये मदद की भावना समाप्त हो जायेगी।" खड्गसिंह का हृदय परिवर्तित हो गया। वह रात्रि में बाबा के घर घोड़ा वापस बांध गया। "वाच्यताम् यत् प्रमार्जयन्ति तद्वदन्ति उपगूहनम् ।" किसी सत्य पथ पर चलनेवाले की निंदा करने से उस मार्ग की निंदा होती है। पथ तभी तक सुरक्षित माना जाता है, जब तक कि उस पथ पर चलनेवाले राहगीर सुरक्षित होते हैं। पथ पर चलनेवाले पर कोई आरोप लगा, कोई कलंक लगा, तो वह पथ भी कलंकित होता-ही-होता है। इसलिए सम्यग्दृष्टि को मार्ग की सुरक्षा की चिंता होती है। वह सत्य के पथ को सतत अलंकृत करने का यत्न करता है। मार्ग उसके गुणों से अलंकृत होता है। सम्यग्दृष्टि दूसरों की निंदा नहीं करता "परात्मनिंदाप्रशंसे सद्सद्गुणोच्छादनोद् भावनैश्च नीचैर्गोत्रस्य" अर्थात् दूसरे की निंदा करने और अपनी प्रशंसा करने, दूसरों के सद्गुणों को छिपाने और अपने असद्भूत गुणों को प्रगट करने से नीचगोत्र का बंध होता है। यह बंध पहले-दूसरे गुणस्थान तक ही होता है। अतः वह सम्यक्त्व की भूमिका से बाहर हो जाता है। __निंदा रस में लीन व्यक्ति जीवन-रस से वंचित रह जाता है। इसलिये उपदेश दिया जाता है कि निंदा का प्रसंग आ ही जाये तो उसे टाल दो, उस पथ पर चलने वाले लोग हतोत्साहित होंगे। इस प्रसंग में आचार्य समन्तभद्र स्वामी ने सेठ जिनेन्द्रभक्त का स्मरण किया है, जिन्होंने मार्ग को कलंकित होने से बचाया था। जिनेन्द्रभक्त सेठ सही अर्थों में जिनेन्द्रभक्त था। पादलिप्त नगर में एक सेठ रहता था। वह महान जिनभक्त था, सम्यक्त्व का धारक था और धर्मात्माओं के गुणों की वृद्धि तथा दोषों का उपगूहन करने के लिए प्रसिद्ध था। पुण्य के प्रताप से वह बहुत वैभव-सम्पन्न था। उसका सात मंजिला महल था। वहाँ सबसे ऊपर के भाग में उसने 0 549_n
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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