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________________ हो सकते हैं। मार्ग की निंदा हो जायेगी। शुभ्र वस्त्र पर एक छोटा-सा दाग भी सबको दिखाई पड़ता है। बाबा भारती को अपना घोड़ा 'सुल्तान' प्राणों से भी अधिक प्रिय था। उस सुन्दर कद-काठी के घोड़े को डाकू खड्गसिंह हासिल करना चाहता था। उसने उसे मुँहमाँगी कीमत देकर खरीदना चाहा। बाबा को वह घोड़ा प्राण-प्रिय था। वे किसी भी मूल्य पर 'सुल्तान' को देने को तैयार नहीं थे। एक दिन सुल्तान और बाबा भारती सैर करने जा रहे थे। उन्हें एक करुण पुकार सुनाई दी। बाबा रुके, देखा, एक गरीब वृद्ध आदमी करुण अवस्था में पुकार रहा है। पूछा- क्या बात है भाई? __वह बोला- "मैं अस्वस्थ हूँ। चला नहीं जा रहा है, पास के गाँव में जाना है, मदद करो, कृपा होगी।" बाबा भारती ने उसे घोड़े पर बैठा लिया और स्वयं उसकी लगाम पकड़ कर धीरे-धीरे चलने लगे। अचानक उन्हें झटका लगा और उनके हाथ से लगाम छूट गई। वे सकते में आ गये। उन्होंने देखा कि वह पुरुष घोड़े को भगाता हुआ ले जा रहा है। वह अपरिचित नहीं, वह तो डाकू खड्गसिंह है। एक क्षण हतप्रभ से रह गए और अगले ही क्षण आवाज दी- खड्गसिंह रुको, मेरी बात सुनो। खड़गसिंह बोला- “जो चाहो माँग लो, लेकिन यह घोड़ा नहीं दूंगा।" बाबा भारती बोले- “खड्गसिंह! घोड़ा तो अब तुम ले लेना, वापस नहीं माँगता, पर मेरी एक प्रार्थना सुन लो। इस घटना की चर्चा किसी से मत करना, बस ।” डाकू खड्गसिह अचंभित रह गया। यह क्या? कुछ समझ नहीं सका, तो पूछा- “ऐसा क्यों कह रहे हो?" बाबा भारती बोले- "सिर्फ इसलिए कि यदि तुमने इस घटना को प्रचारित कर दिया तो उससे लोगों का गरीब/असहायों पर से विश्वास उठ जायेगा। वे उन्हें ठग/धोखेबाज समझ कभी मदद नहीं करेंगे। 548
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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