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________________ संसारी जीव मोह के कारण सुखदायी समझता है, जैसे कि यदि किसी मनुष्य ने धतूरा खा लिया हो तो उसको अपनी आँखों से सभी वस्तुयें सोना दिखाई देती हैं। ये मनोहर प्रतीत होने वाले विषयभोग भोगने के लिये ज्यों-ज्यों इस जीव को प्राप्त होते जाते हैं, त्यों-त्यों लोभवश इसकी लालसा और अधिक बढ़ती चली जाती है, इसे तृप्ति नहीं होती। सागर में एक सिपाही था। वह एक वेश्या में आसक्त था। जो कुछ धन-दौलत उसके पास थी, वह सब उसने धीमे-धीमे वेश्या को दे दी। वह अब बड़ा दरिद्र अवस्था का हो गया। निर्धन हो जाने के कारण अब वेश्या ने उसे अपने घर आने से मना कर दिया। तो वह सिपाही उसके घर के सामने ही रात-दिन पड़ा रहता था। किसी ने पूछा- आप यहाँ क्यों पड़े रहते हो? तो वह बोला- मुझे इस वेश्या से प्रेम है, पर यह मुझे अपने घर तो आने नहीं देती, लेकिन जब कभी वह घर से बाहर निकलती है, तो मैं उसे देख लेता हूँ। हम मन के गुलाम न बनें। विषयभोगों में आसक्त-मन ही संसार-बंधन का कारण है। आचार्यों ने लिखा है मनएव मनुष्याणां, कारणं बन्धमोक्षयोः । बंधाय विषयासक्तं, मुक्तयै निर्विषयं स्मृतम्।। मन ही मनुष्य के बंधन तथा मोक्ष का कारण है। विषयासक्त मन बंधन का तथा निर्विषय मन मुक्ति का कारण बनता है। जिस मनुष्यशरीर से हमें मोक्ष प्राप्त करने की साधना करनी चाहिए थी, उसे विषय- भोगों में बरबाद कर रहे हैं। पर ध्यान रखना, इन इन्द्रिय-विषयों से आज तक किसी का भी भला नहीं हुआ। यह विषयों का भोग भोगते समय तो भला लगता है, परन्तु इसका परिणाम नियम से खराब होता है। विषयभोगों की इच्छा से सुख कभी नहीं मिल सकता। सीता ने स्वर्ण मृग को प्राप्त करने की इच्छा की, तो रावण के चंगुल में फँसना पड़ा। रावण ने सीता के अपहरण की इच्छा की, तो नरक जाना 0 4810
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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