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________________ अपनी हवेली में दोपहर में पलंग पर सो गया। उसे स्वप्न आया कि उसको गर्मी बहुत लगी है, सहा नहीं जाता। इसलिए चलें, समुद्र की ठंडी लहरों में थोड़ा घूम आवें। वह चला नहीं, स्वप्न में देख रहा है। समुद्र के पास गया। नाविक बोला कि हमें एक घण्टे तक इस समुद्र की सैर करा दो। बोला- ठीक है, 5 रु. फीस है। बोले, ठीक है। इतने में स्त्री बोली कि हमें भी ले चलो, हम भी चलेंगे। घर के बच्चे बगैरा भी ऐसा कहने लगे कि हमको भी ले चलो। सब नाव में बैठ कर करीब आधा मील पहुँचे तो समुद्र में भंवर आयी। नाविक ने सेठ से कहानाव डूबने से नहीं बचेगी। हम तो तैरकर निकल जावेंगे। सेठ नाविक से बोला कि 5 हजार रु. ले लो, 50 हजार रु. ले लो, परन्त नाव को पार कर दो, नहीं तो हम सब मर जावेंगे। (इस समय स्वप्न में देखो कि दुःख कितना हो रहा है?) स्वयं हम भी मरेंगे और हमारे सहायक भी मरेंगे। अब क्या होगा? सारी बातें सोच-सोच कर क्लेशित हो रहे हैं। पर सेठ जी होते तो हैं देखो बंगले में. मित्र लोग देख रहे हैं कि सेठ जी बंगले में सो रहे हैं। कब जागेंगे? नौकर-चाकर भी काम कर रहे हैं। सेठ जी स्वप्न देख रहे हैं। नौकर-चाकर तथा मित्र कोई भी उनके दुःख को मिटाने में समर्थ नहीं है। उनका दुःख केवल एक ही उपाय से मिट सकता है कि जाग जायें, नींद खुल जाए। उनके दुःखों के मिटाने का और कोई दूसरा साधन नहीं है। जाग गये तो देखा कि वहाँ समुद्र नहीं है और न वे सारे दुःख हैं। इसी तरह इस जगत के प्राणी मोह की नींद में सो रहे हैं और मोह की नींद वह है जहाँ पर सब दुःखी रहते हैं। यह मेरा घर है, यह मेरा वैभव है, यह मेरा परिवार है, इतना मेरा बन गया है, इतने का नुकसान हो गया है, अपमान हो गया है, इज्जत मिट गयी। सारे अपने मोह को ही देख रहे हैं। देखो, कैसा वह ज्ञानानन्द स्वरूप है? यह जीव अपने आनन्द की सत्ता में है, जिसका स्वरूप भगवान्वरूप है। ऐसे ज्ञानानन्द स्वभाव में यह सब है। लेकिन मोह में पड़े हुए हैं और सारा जगत लाभ-हानि मानकर दुःखी हो रहा है। इस जीव के दुःखों के मिटाने में कौन समर्थ है? क्या परिवार के लोग या मित्रजन, क्या अपनी चेष्टा करके दुःख मिटा सकते हैं? कोई दुःख मिटाने में समर्थ नहीं है। su 435 an
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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